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________________ १९६ ] - [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ योनि का ही अभिन्न अंग मानव जाति की ही है । न नारी अनार्य देश की उत्पत्ति है, न असंख्यात वर्षों की आयुष्य वाली और अतिक्रर मतिवाली है। नारी उपशान्तमोहा न हों ऐसी बात भी नहीं है। अथवा वह शुद्ध आचार वाली नहीं हो, ऐसी बात भी नहीं है । न स्त्री अशुद्ध बोधि वाली है और न व्यवसाय-अध्यवसाय विहीन ही है। नारी अपूर्वकरण की विरोधिनी भी नहीं और न नव गुणस्थानों से रहित ही है । इसी प्रकार स्त्री लब्धियों को प्राप्त करने में भी अयोग्य-अक्षम नहीं है और न वह अकल्याण की भाजन ही है । मुक्ति प्राप्ति के लिये परमावश्यक इन सभी योग्यताओं से सम्पन्न होते हुए भी स्त्री उत्तम धर्म की साधिका और मुक्ति की अधिकारिणी क्यों नहीं हो सकती? हो सकती है और सुनिश्चित रूप से स्त्री भी पुरुषों के समान ही उसी भव में मोक्ष पा सकती है।" . यापनीय संघ के इस प्रचार का दक्षिणापथ में ऐसा अचिन्त्य-अद्भुत प्रभाव पड़ा कि थोड़े ही समय में जैन धर्म का यह यापनीय संघ बड़ा ही लोकप्रिय और शक्तिशाली संगठन बन गया । "स्त्रियां उसी भवन में मोक्ष नहीं जा सकतीं" दिगम्बर परम्परा के प्राचार्यों द्वारा किये गये इस प्रचार से महिला वर्ग में जो एक प्रकार की निराशा घर किये हुए थी, वह यापनीय संघ के "स्त्रोणां तद्भवे मोक्षः" इस प्रचार से पूर्ण रूपेण तिरोहित हो गई। नारि-वर्ग में एक बलवती आशा को किरण का अभ्युदय हुआ और वे पूरे उत्साह के साथ यापनीय प्राचार्यों, श्रमणों एवं श्रमणियों के मार्गदर्शन में, धर्माचरण में, धार्मिक आयोजनों में, धर्म के अभ्युदय एवं उत्कर्ष के लिए प्रावश्यक चैत्यनिर्माण, वसति निर्माण, तीर्थोद्धार, मन्दिरों के जीर्णोद्धार-पुननिर्माण प्रादि कार्यों में, तन, मन, धन से पूर्णतः सक्रिय सहयोग देने लगीं। नारी जाति को धर्म-संघ में पुरुषों के समान अधिकार देने में यापनीय संघ वस्तुतः श्वेताम्बर संघ से भी आगे बढ़ गया। स्त्रियों को पूर्ण मनोयोग पूर्वक धर्ममार्ग पर प्रवृत्त करने हेतु प्रोत्साहित करने के लिये स्त्रियों के साथ यापनीय संघ ने श्वेताम्बर आचार्यों से भी अधिक उदारता प्रदर्शित की । यापनीय संघ ने अपने धर्मसंघ के अभिन्न अंग साध्वी समूह के संचालन का सर्वोच्च अधिकार विदुषी एवं महती प्रभाविका साध्वियों को प्रदान कर उन्हें साधु-संघ के प्राचार्यों के समान ही साध्वी संघ की प्राचार्या के पद पर अधिष्ठित किया । वस्तुतः यह एक बड़ा ही क्रांतिकारी एवं अभूतपूर्व कदम था, जो यापनीय संघ ने उठाया। यापनीय संघ के कर्णधारों द्वारा लिये गये इस समयोचित निर्णय के फलस्वरूप दक्षिणापथ के नारी समाज में नवजीवन की लहर के साथ धर्माभ्युदयकारी कार्यों में न केवल सहभागी होने की ही अपितु सर्वाग्रणी बनने की भी एक ऐसी अदम्य लहर तरंगित हो उठी कि समग्र दक्षिणापथ साधनों के समान साध्वियों के संघों के भी आवास-स्थलों, मठों, मन्दिरों, चैत्यालयों, वसतियों, गिरिगुहाओं, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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