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________________ १९२ 1 [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ ३५३ में उपलब्ध होता है । मेष पाषाण वस्तुत: दक्षिणापथ के किसी स्थान विशेष का नाम था, उस स्थान से सम्बन्धित साधुसमूह के संगठन का नाम मेषपाषाण गच्छ पड़ा। (१०) तिन्त्रिपीक गच्छ- इस गच्छ का नामोल्लेख कुप्पुटरू के लेख सं० २०९, तिप्पूर के लेख सं० २६३, बुद्रि के लेख सं० ३१३, तेवरतेप्प के लेख सं० ३७७, एलेवाल के लेख संख्या ३८६, चिक्क मागड़ि के लेख संख्या ४०८, आदि के लेख संख्या ४३१, बन्दलिके के लेख सं ४५६ और बस्तिपुर के लेख संख्या ५८२ . (११) कनकोत्पल सम्भूत वक्षम ल गरण-वृक्ष मूल से सम्बन्धित जो गरण हैं वे यापनीय परम्परा के नन्दिसंघ से सम्बन्धित हैं। (१२) श्रीमल मल गण-- जैन शिलालेख संग्रह, भाग २ के लेख संख्या १२१ में श्रीमूल मूल गण द्वारा अभिनन्दित नन्दिसंघ के एरेगित्तूर नामक गण के पुलिकल गच्छ के पाम्नायों की छोटी सी नामावलि दी है। (१३) सूरस्थ गरण-इस गण का उल्लेख लेख सं० १८५, २६६, ३१८ . पौर ४६० में है। वृक्ष मूल से सम्बन्धित गण वस्तुतः यापनीय संघ के गण हैं, यह जो कतिपय विद्वानों का अभिमत है, इसकी पुष्टि अनेक अभिलेखों से होती है। उदाहरण के रूप में लेख संख्या १२४ में स्पष्ट उल्लेख है : .........."श्री यापनीयनन्दिसंघ पुनागवृक्षमूलगणे श्री कीर्त्याचार्यान्वये बहुष्वाचार्येष्वतिक्रान्तेषु व्रतसमितिगुप्तिगुप्तमुनिवृन्दवन्दितचरणः कुविलाचार्य प्रासीत्"............। इस उल्लेख से निर्विवादरूपेण यह तथ्य प्रकाश में प्राता है कि नन्दि संघ यापनीय परम्परा का एक प्रमुख संघ था और पुन्नागवृक्षमूलगरण उस यापनीय परम्परा के नन्दिसंघ का एक प्रमुख गरण । कदम्बवंशी राजा मृगेश वर्मा (ई० सन् .४७०-४६०) और रविकीर्ति ने पलाशिका के यापनीय साधु-साध्वियों के लिए चातुर्मासावधि में भोजन की व्यवस्था तथा प्रतिवर्ष जिनेन्द्र देव की महिमा पूजा तथा अष्टाह्निक महोत्सव मनाने के लिए पुरुखेटकग्राम आदि का दान दिया। इस प्राचीन अभिलेख और इसके उत्तरवती 'जैन शिलालेख संग्रह भाग २ और ३ २ जन शिलालेख संग्रह, भाग २, कड़व से प्राप्त संस्कृत तथा कन्नड़ भाषा में राष्ट्रकूट राजा प्रभूतवर्ष का शक सं० ७३५ का लेख संख्या १२४, पृ० १३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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