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________________ यापनीय परम्परा ] [ १९१ तृतीय भाग में संकलित किये गये हैं । दक्षिण के यशस्वी इतिहासकार श्री पी. बी. देसाई ने अपने " जैनिज्म इन साउथ इण्डिया एण्ड सम जैन एपिग्राफ्स" नामक ग्रन्थ में पूरी खोज के पश्चात् जिन गणों अथवा गच्छों को यापनीय परम्परा का सिद्ध किया है और शिलालेखों से जो गरण अथवा गच्छ यापनीय संघ के गरण एवं गच्छ सिद्ध होते हैं, उनके नाम इस प्रकार हैं (१) पुन्नाग वृक्ष मूल गरण - अनेक स्थलों पर इसका उल्लेख वृक्ष मूल गरण के नाम से भी उपलब्ध होता है । (२) बलात्कार गरण - बलहारि अथवा बलगार गण । बलगार, ऐसा प्रतीत होता है, दक्षिणापथ का कोई स्थान विशेष था । जिस प्रकार कोण्डकुन्द नामक स्थान से निकले यापनीय आचार्यों और दिगम्बर संघ के प्राचार्यों की परम्पराओं का नाम कौण्डकुन्दान्वय पड़ गया, उसी प्रकार बलगार नामक स्थान से निकले आचार्यों के गरण का नाम बलहार, बलगारी और कालान्तर में बलात्कार गरण पड़ गया । —— (३) कुमिदी गरण गरग-मुगुद से प्राप्त शिलालेखों में यापनीय संघ के इस गरण का नाम कुमुदि गरण उल्लिखित है । • (४) कण्डूर गरण अथवा क्राणूर गरण प्रदरगुची, होसूर, हुबली, हली, हुल्लूर और सौंदत्ती से उपलब्ध शिलालेखों में कण्डूरगरण का नाम प्राप्त होता है । (५) मडुवगरण - सेडम में प्राप्त शिलालेख में मडुवगरण का नाम प्राप्त होता है। (६) बण्डियूर गरण इस गरण का नाम ग्राडकी, सूड़ी, तेंगली और मनौली से प्राप्त शिलालेखों में उपलब्ध होता है । - (७) कारेय गण और मेलाप प्रन्वय -- यह नाम बड़ली, हन्निकेरि, कलम्वाइ और सौंदत्ती से प्राप्त शिलालेखों में उपलब्ध होता है । Jain Education International (८) कोटि मडुव गरण - यह मडुव गरण का ही ग्रपर नाम प्रतीत होता है । ग्रान्ध्र प्रदेश में प्राप्त ग्रम्मराज (द्वितीय) द्वारा दिये गये मलियपुण्डी दान के शिलालेख में मडुव अथवा कोटि मडुव गरण, यापनीय संघ और नन्दिगच्छ का उल्लेख है । ग्रान्ध्र प्रदेश में यापनीय संघ का एक मात्र यही शिलालेख अब तक उपलब्ध हो सका है । ( 2 ) मेष पाषारण गच्छ इस गच्छ के नाम का उल्लेख तट्टे केरे से प्राप्त लेख संख्या २१९. निदिगि से प्राप्त लेख संख्या २६७, कल्लूरगुडु से प्राप्त लेख संख्या २७७ पुग्ने मे प्राप्त लेख संख्या २६६ और दीड़गुरु से प्राप्त लेख संख्या For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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