________________
१८६ ]
[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३
साध्वियों को इस प्रकार के अधिकार दिये हों, इस बात की तो कल्पना तक भी नहीं की जा सकती।
___ इन सब तथ्यों से यही प्रकट होता है कि भट्टारक परम्परा पर यापनीय संघ का न केवल प्रभाव ही पड़ा किन्तु इस संघ ने साध्वियों को साधनों के समान ही पूर्ण अधिकारों के साथ भट्टारक पद पर आसीन कर भट्टारक परम्परा को किसी समय एक नया मोड़ भी दिया ।
३. भट्टारक परम्परा पर यापनीय संघ के प्रभाव का एक और प्रमाण उपलब्ध होता है । वह यह है कि तिम्चारणत्थुमले में प्राचीन काल में जैन संघ का विश्वविद्यालय था, उस पर प्रकाश डालने वाले कलुगुमले से जो बड़ी संख्या में शिलालेख मिले हैं, उनमें एक साध्वी भट्टारिका का उल्लेख है कि उस भट्टारिका ने उस विश्वविद्यालय में जैन सिद्धान्तों का उच्चकोटि का प्रशिक्षण दे विद्वान् स्नातकों को देश के विभिन्न प्रान्तों में धर्म के प्रचार के लिये भेजा।'
इस सन्दर्भ में ढेरों (अगणित) शिलालेख शोधाथियों के लिए गहन शोध के विषय हैं, जिनमें इस जैन विश्वविद्यालय से उच्च सैद्धांतिक शिक्षण प्राप्त स्नातकस्नातिकाओं के नाम और सम्भवतः उनकी शैक्षणिक योग्यता अंकित की गई है। इन शिलालेखों में कतिपय कुरत्तिगल (गुरुगियों अर्थात साध्वियों) के नाम भी अंकित प्रतीत होते हैं । पुरातत्वविदों एवं शोधप्रिय विद्वानों का ध्यान आकर्षित करने के उद्देश्य से South Indian Inscriptions (Texts), Volume V में बहुत बड़ी संख्या में संग्रहीत शिलालेखों में से तीन अभिलेख यहां प्रस्तुत किये जा रहे हैं ..
नं. ३२१ (A. R. No. 32 of 1894)
In the same place 1. श्री मिल्झलुरुक्कु2. रत्तियार माना3. क्किग्रार तिरुचा4. रणत्थ [पडेइ] गल
5. वित्त तिरुमेनी9. There is epigraphic evidence to show that there was a reputed Jaina
University at Tiruchcharanathumalai. From the inscriptions found at Kalugumalai we find that a number of disciples trained by the priestess of this University went in different directions to preach Jain Dharma.
-The Forgotten History of the Land's End by S. Padmanabhan
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org