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भट्टारक परम्परा ]
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अपनी इस मान्यता का दक्षिण में प्रचार किया-"स्त्रीणां न तद्भवे मोक्षः" अर्थात् स्त्रियां अपने उसी भव में मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकतीं। इसके विपरीत यापनीय संघ ने श्वेताम्बर संघ की "स्त्रीणां तद्भवे मोक्षः" अर्थात् स्त्रियों की उसी भव में जन्म-जरा-मृत्यु से, सदा सर्वदा के लिए मुक्ति हो सकती है, इस मान्यता के प्रचार के साथ-साथ साध्वियों को साधुओं के समान अधिकार देने में श्वेताम्बर संघ को भी पीछे छोड़ दिया। यापनीय संघ ने साध्वियों को भी साधुओं के हो समान स्वतन्त्र रूप से संघ संचालन का, नर-नारी वर्ग को समान रूप से अपना गहस्थ शिष्य के रूप में अनुयायी बनाने तथा स्त्री एवं पुरुषों को समान रूप से श्रमणधर्म में दीक्षित कर अपना शिष्य बनाने का अधिकार दिया। उन्होंने जैन संघ के अनेक कठोर नियमों को सरल बना उदार नीति का अवलम्बन लेते हुए देश-काल और मानव-मनोवृत्ति की बदली हई परिस्थितियों के अनुरूप नियम बनाये। उन्होंने श्वेताम्बर संघ की मान्यता के अनुरूप "स्त्रीणां तद्भवे मोक्षः" के समान ही "सग्रन्थानां मोक्षः" अर्थात् सवस्त्र रहते हुए भी साधक मोक्ष प्राप्त कर सकता है और "परशासने मोक्षः" अर्थात् -जैनेतर धर्म का अनुयायी भी मोक्ष का अधिकारी हो सकता है-इन मान्यताओं का प्रचार किया।
__ यापनीय प्राचार्यों ने इस गूढ़ रहस्य को भलीभांति पहचा लिया था कि यदि स्त्रियों की धार्मिक भावनामों को, आध्यात्मिक भावनाओं को उभार कर उन्हें प्रोत्साहित किया जाय तो वे पुरुषों की अपेक्षा कई गुना अधिक धर्म प्रचार कर सकती हैं । यापनीय संघ के प्राचार्यों द्वारा स्त्रियों का इस प्रकार सम्मान बढ़ाया गया, स्त्रियों की धार्मिक भावनाओं को उभार कर उन्हें प्रोत्साहित किया गया और इस सबके साथ ही साथ कट्टरता का परित्याग कर धर्म सम्बन्धी नियमों में उदारता के साथ सरलीकरण किया गया। उन सब का परिणाम यह हुआ कि मध्य युग में जैनधर्म कर्णाटक प्रदेश का बहुजन सम्मत प्रधान धर्म बन गया। जैन धर्म के दिगम्बर आदि सब संघों से यापनीय संघ अधिक शक्तिशाली, अधिक लोकप्रिय बन गया। कर्णाटक में जैन धर्म की गहरी नींव लग गई। कर्णाटक प्रान्त में चारों पोर घर-घर ग्राम-ग्राम और नगर-नगर में जैन धर्म का वर्चस्व दृष्टि-गोचर होने लगा।
तामिलनाडु के मदुरा तिरुचारणम् मल आदि क्षत्रों में जो भट्टारिकाओं, पट्टिनियों, कुरत्तियों आदि के उल्लेख उपरिचर्चित शिलालेखों में उपलब्ध होते हैं, उनसे यह प्रतीत होता है कि प्राचीन काल में तामिलनाडु में भी यापनीय संघ बड़ा लोकप्रिय संघ रहा था। यद्यपि इसका कोई ठोस प्रमाण तो उपलब्ध नहीं होता किन्तु तामिलनाडु में साध्वियों के द्वारा स्वतन्त्र रूप से संचालित संघों के अस्तित्व के उल्लेखों से यही अनुमान लगाया जाता है कि कर्णाटक के समान तामिलनाड़ में भी यापनीयों का सुनिश्चित रूप से बड़ा प्रभाव रहा होगा। दिगम्बर संघ ने
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