SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 239
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भट्टारक परम्परा ] [ १८१ ___ जैन इतिहास के विद्वान् एवं कर्णाटक के यशस्वी पुरातत्वज्ञ स्व. श्री पी. वी. देसाई ने भी पुन्नागवृक्ष मूल गण, कुमुदी गण, कण्डूर गण और कारेय गणइन गणों को यापनीय संघ का ही माना है।' इन ऐतिहासिक साक्ष्यों से यह सिद्ध हो जाता है कि क्राणूर गण (कारणूरगण कण्डरगण) यापनीय संघ का गण था और चामुण्ड राय के गुरु प्राचार्य नेमि चन्द्र मूलतः क्राणूर गण के प्राचार्य थे। प्राचार्य नेमिचन्द्र गंगवंशी महाराजा राचमल्ल के महामन्त्री एवं सेनापति चामुण्डराय के गुरु थे, दक्षिण मदुरा से चामुण्डराय अपने गुरु के साथ बाहुबली की प्राचीन मूर्ति के दर्शन के लिए प्रस्थित हुए। श्रवण बेल्गुल में उन्होंने बाहुबली की मूर्ति के सम्बन्ध में स्वप्न देखा । प्रातःकाल अपने गुरु आचार्य नेमिचन्द्र के साथ परामर्श कर उनके निर्देशानुसार सब कार्य सम्पन्न कर बाहबली (गोम्मटेश्वर) को प्रकट करने में समर्थ हुए। उसके पश्चात् आचार्य नेमिचन्द्र ने गोम्मटसार की रचना की और चामुण्डराय ने उन्हें श्रवण बेल्गोल के मुख्य पीठ का पीठाधीश बनायाइन सब बातों का उल्लेख प्राचीन ताडपत्रीय ग्रन्थों में भी उपलब्ध होता है । उसके कुछ अंश इस प्रकार हैं तच्छिष्यो नेमिचन्द्रार्यः, सिदान्ताम्भोधि पारगः.। येन सम्बोधितः क्षिप्र, चामुण्ड: पृथिवीपतिः ॥२२६।। नेमिचन्द्र मुनीन्द्ररण, साकमुक्त वा महीपतिः ॥२३७।। तदनुज्ञां परिग्राह्य, दृष्ट्वाबाण प्रयोगतः। गोमटाधीश्वरं प्राज्ञः, पूजयामास तं जिनम् ।।२३८।। चामुण्डाध्ययनार्थ हि, तत्र बेल्गुल पत्तने । सारं संगृह्य सिद्धांतान्नेमिचन्द्रो महामुनिः ।।२३६।। सारत्रयमितिख्यातं, कृतवान्शास्त्रमुत्तमम् । तद्गोमट त्रिलोकोद्य, लब्धिसार समाह्वयम् ॥२४०।। तद् बेल्गुल महासिंहासनासीनो मुनीश्वरः । नेमिचन्द्राख्यसिद्धान्त देवो गुणनिधिबंभो ॥२४॥ षण्नवत्यन्वितं भक्त्या, सहस्र लक्षपूर्वकम् । राज्यं चामुण्ड भूपालो, गोमटेशस्य संददौ ॥२४६॥ बेल्गुलाख्यं महातीर्थ, वर्धयन्मुनिपुंगवः । नेमिचन्द्राख्य सिद्धान्त देवः संतोषतः स्थितः ॥२५३॥' Jainisni in South India & Some Jaina Epigraphs, pages 99, 142, 143 etc. जैनाचार्य परम्परा महिमा (प्रप्रकाशित) हस्तलिखित प्रति, "प्राचार्य श्री विनय चंद्र भान भण्डार, शोध प्रतिष्ठान, लाल भवन, चौड़ा रास्ता, जयपुर ३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy