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________________ भट्टारक परम्परा । [ १७६ और मूल श्रमणाचार में कोई विशेष अथवा आमूलचूल परिवर्तन नहीं किया। अपने अपने परम्परागत वेश एवं श्रमणाचार को साधारण हेर-फेर के साथ अपनाये रखा। ( वीर नि० सं० १००० के उत्तरवर्ती काल में पूर्वज्ञान जैसे विशिष्ट ज्ञान से सम्पन्न आचार्यों के न रहने के कारण चैत्यवासियों का जनसाधारण पर प्रभाव द्र त वेग से बढ़ने लगा। चैत्य वासियों द्वारा अपनाये गये चित्ताकर्षक एवं आडम्बरपूर्ण विधि-विधानों-तौर-तरीकों के परिणामस्वरूप चैत्यवासी परम्परा लोकप्रिय होती हुई जन-जन के मानस पर छाने लगी। श्वेताम्बर दिगम्बर और यापनीय-इन तीनों संघों के बहुसंख्यक अनुयायियों का झुकाव चैत्यवासी परम्परा की ओर उत्तरोत्तर बढ़ते रहने के फलस्वरूप इन तीनों परम्पराओं के अनुयायियों की संख्या क्षीण होने के साथ-साथ नये दीक्षार्थियों के न मिलने के कारण साधनों और साध्वियों की संख्या भी क्षीण होने लगी। इससे इन तीनों परम्पराओं के कर्णधार आचार्यों को अपनी-अपनी परम्परा के विलुप्त हो जाने की आशंका हुई। गहन चिन्तन-मनन और विचार-विनिमय के पश्चात् उन्होंने अपनी-अपनी परम्परा के अस्तित्व को बनाये रखने के लिये उस समय के लोक प्रवाह और बदले हुए समय की मांग को दृष्टिगत रखते हुए चैत्यवासी परम्परा के अनेक कार्य-कलापों द्रव्यार्चना के विधि-विधानों, तौर-तरीकों आदि को कतिपय नवीनताओं के साथ अपनाते हुए अपने वेश एवं श्रमणाचार में भी आमूल-चूल परिवर्तन कर दिया। इस प्रकार भट्टारक परम्परा पर चैत्यवासी परम्परा का पर्याप्त प्रभाव पड़ा। भट्टारक परम्परा पर यापनीय परम्परा का प्रभाव प्राचीन अभिलेखों के गम्भीरतापूर्वक पर्यालोचन से भट्टारक परम्परा पर यापनीय परम्परा के प्रभाव के अनेक ऐसे आश्चर्यकारी तथ्य प्रकाश में आते हैं, जिनकी ओर पुरातत्वविदों का ध्यान अद्यावधि आकर्षित नहीं हो पाया है। उनमें से कतिपय तथ्यों पर यहां प्रकाश डालने का प्रयास किया जायगा (१)(सबसे पहला आश्चर्यकारी तथ्य तो यह है कि भट्टारक परम्परा का प्रमुख पीठ अथवा सिंहासन पीठ श्रवण बेल्गोल भी सर्वप्रथम यापनीय परम्परा के प्राचार्य नेमिचन्द्र के द्वारा संस्थापित किया गया और संसार प्रसिद्ध बाहुबली गोम्मटेश्वर की विशाल मूर्ति की प्रतिष्ठा भी इन्हीं यापनीय परम्परा के प्राचार्य नेमिचन्द्र ने गंग राजवंश के महाप्रतापी राजा राचमल्ल चतुर्थ के सेनापति एवं महामन्त्री जामुण्ड राय के द्वारा करवायी। प्राचार्य नेमिचन्द्र महामन्त्री चामुण्डराय के गुरु गोम्मटसार के रचयिता और यापनीय परम्परा के कारगरगण के मेषपाषाण गच्छ के प्राचार्य थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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