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________________ । [जैन धर्म का मोलिक इतिहास-भाग ३ पत्तन में दक्षिणाचार्य प्रवर का महासिंहासन स्थापित कर वहां भट्टारक परम्परा का प्रमुख पीठ स्थापित किया गया। श्रवण बेल्गोल के उस महा सिंहासन पर विराजमान प्राचार्य नेमिचन्द्र सुशोभित होने लगे।' - महाराजा चामुण्ड अपने उन प्राचार्यदेव नेमिचन्द्र के पादप्रक्षालन एवं उनकी अर्चा-पूजा के लिये सदा समुद्यत रहता था । महाराज चामुण्ड ने १,६६,००० (एक लाख छु यानवे हजार) मुद्रामों की प्रतिवर्ष प्राय वाला विशाल भूखण्ड गोमटेश को भेंट के रूप में सदा-सर्वदा के लिए समर्पित किया। महाराज चामुण्ड ने श्रवणबेल्गुल में नन्दीश्वर महापूजा आदि अनेक भव्य महोत्सव आयोजित किये। उन महोत्सवों के कारण श्रवणबेल्गुल नगर सदा धर्मनगर का रूप धारण किये रहता था। इस प्रकार गोमटेश्वर तीर्थ की स्थापना, श्रवणबेल्गुल में दक्षिणाचार्य के प्रधान पीठ की प्रतिष्ठापना और अनेक महोत्सवों के प्रायोजनों के पश्चात् चामुण्डराज अपने गुरु दक्षिणाचार्य श्री नेमिचन्द्र की आज्ञा प्राप्त कर शंख नादों एवं दुन्दुभि आदि नानाविध वाद्यों के निर्घोषों के साथ श्रवणबेल्गुल से सदलबल प्रस्थित हो अपने राज्य की राजधानी दक्षिण मथुरा (मदुरा) पहुंचा और गोमटेश जिन के चरणयुगल का स्मरण करता हुआ न्यायनीतिपूर्वक प्रजा का पालन करने लगा। महाराज चामुण्ड की सेना में ८००० हाथी, १०,००,००० अश्वारोही और अगणित पदाति सुभट थे। उधर सिद्धान्तदेव आचार्य नेमिचन्द्र श्रवणबेल्गुल में रहते हुए तीर्थ का अभिवर्द्धन एवं धर्म का प्रचार-प्रसार करने लगे। वे जिनेन्द्र मार्ग के सार्वभौम सर्वोच्च अधिकार एवं सत्ता सम्पन्न अधिनायक प्राचार्य थे। दक्षिणाचार्यवर्यस्य, तस्माद्वैल्गुलपत्तनम् । महासिंहासनस्थानं, जातं सौख्याकरं यतः ॥२४२।। तटेल्गुल महासिंहासनासीनो मुनीश्वरः । नेमिचन्द्राख्य सिद्धान्त देवो गुणनिधिर्बभौ ॥२४४॥ ___जैनाचार्य परम्परा महिमा (हस्तलिखित) षण्नवत्यन्वितं भक्त या, सहस्र लक्षपूर्वकम् । राज्यं चामुण्डभूपालो, गोमटेशस्य संददौ ॥२४६।। नियुतं षण्नवत्युद्ध, सहस्रान्वितमादरात् । राज्यं चामुण्डभूपालो, गोमटेशस्य संददौ ॥२४७।। अष्टौ दन्तिसहस्राणि, दशलक्ष तुरंगमाः। भटानां गणना नैव, तद्भूपाल बलाम्बुधौ ॥२५१।। -जैनाचार्य परम्परा महिमा w Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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