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भट्टारक परम्परा ]
[ १५७ कुछ क्षण चिन्तन-मुद्रा में रह कर आचार्य माधनन्दि ने समागत जनसमूह को आश्वस्त करते हुए कहा- आप लोग चिन्ता का परित्याग कर मैं जो उपाय बता रहा हूं, उसे ध्यानपूर्वक सुनो, जिससे कि तुम्हारे पुत्रों के प्राणों को भी किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचे और तुम्हारी कीर्ति भी संसार में चिरकाल तक स्थायी रहे। आप लोग तो राजा के समक्ष केवल इतना ही कह देना"राजन ! हम इन बालकों के माता-पिता अपने इन प्रात्मजों को सदा सर्वदा के लिये धर्मसन्तति के रूप में श्रमणधर्म की दीक्षा हेतु धर्मसंघ को समर्पित करते हैं।")बस, आप लोगों द्वारा यह कह दिये जाने के अनन्तर शेष कार्य में स्वयं कर लूगा । इस घोर संकट से बचने का केवल यही एक उपाय मुझे सूझ रहा है। इसके अतिरिक्त अन्य कोई उपाय आपके ध्यान में हो तो आप लोग बतायो।"
प्राचार्य माघनन्दि का कथन सब को प्राशाप्रद, रुचिकर एवं प्रीतिकर लगा। उन सबका शोक क्षण भर में ही तिरोहित हो गया। कृतज्ञतापूर्ण स्वर में उन्होंने कहा-"भगवन् ! समस्त कुल को पवित्र करने और संसार में कीर्ति का प्रसार करने वाला प्रापका यह सभी भाँति हितकर वचन किसे प्रिय एवं ग्राह्य नहीं होगा? भगवन् पापका यह सुखद सुन्दर सुझाव हमें स्वीकार है, पाप कृपा कर ऐसा ही करें।"
श्रावक-श्राविकावर्ग की स्वीकारोक्ति सुन कर प्राचार्य माघनन्दि को अपूर्व प्रानन्द की अनुभूति हुई । उन्होंने तत्काल महाराजा गण्डादित्य को बुलवाया और कुछ क्षण उसके साथ एकान्त में परामर्श करने के पश्चात् बालकों के मात-पितवर्ग को बुलाकर उनके समक्ष ही राजा गण्डादित्य को सम्बोधित करते हुए कहा"राजन् ! ये धर्मपरायण श्रावक-श्राविका गरण आप जैसे धर्म परायण राजा के राज्य में भी किस कारण शोकाकुल हो रहे हैं ? पाप तो दयालु एवं धर्मपरायण हैं। ये सभी लोग अपने-अपने पुत्रों को श्रमणधर्म में दीक्षित करने के लिये हमें देना चाहते हैं। ऐसी दशा में वे सभी बालक इसी समय से भावोपचार रूप में मुनि ही माने जाने चाहिये। अब आप स्वयं ही सोचिये कि उपचारतः मुनि कहे जाने वाले बालकों की बलिवेदि पर बलि द्वारा हत्या कर आप अपने जैनत्व को किस प्रकार बचाये रख सकेंगे ?"
गण्डादित्य ने अपने गुरु प्राचार्य माघनन्दि के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा-"प्राचार्यवर्य ! प्रापका कथन तो ठीक है किन्तु राज्य और प्रजा की सुरक्षा के लिए परम आवश्यक निर्माणाधीन दुर्ग को क्या दशा होगी?"
प्राचार्य माघनन्दि ने राजा को प्राश्वस्त करते हुए कहा-"राजन् ! मैं मन्त्रशक्ति द्वारा उसका गिरना रोक दूंगा । मेरे ऊपर विश्वास कर माप उस दुर्ग की चिन्ता छोड़ दीजिये।"
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