________________
१५२ ]
[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास -- भाग ३
समय सूर्य की प्रखर किरणों के तीव्र ताप से उनके नेत्रों की ज्योति लुप्तप्रायः हो गई । बंकापुर के जिनालय में आपने शान्तिनाथ भगवान् के स्तोत्र की रचना की । | उस स्तोत्र के प्रभाव से आपकी खोई हुई नेत्र ज्योति प्रापको पुनः प्राप्त हो गई । दृष्टि की पुनः प्राप्ति के पश्चात् प्रापने जिनवाणी के प्रवचनामृत की वर्षा करते हुए जिनशासन की उल्लेखनीय अभिवृद्धि की । जिनशासन प्रभावक प्राचार्य प्रकलंक, कुलभूषण और योगीन्द्र ये आपके समसामयिक अथवा गुरुभाई थे ।
पूज्यपाद जिनेन्द्रबुद्धि के पश्चात् कुलचन्द्र को प्राचार्य पद पर आसीन किया गया । कुलचन्द्र के पश्चात् उनके पट्टधर प्राचार्य माघनन्दि हुए । उन्हें लोग जैनसिद्धान्त त्रक्रवर्ती एवं कोल्लापुर - मुनीश्वर के नाम से भी अभिहित किया करते थे । माघनन्दि मन, वचन, कायगुप्ति से गुप्त, विशुद्ध श्रमणाचार के परिपालक प्रौर निमित्तशास्त्र के पारदृश्वा विद्वान् प्राचार्य थे ।
विकट परिस्थितियों में मट्टारक परम्परा का प्रादुर्भाव :- [श्राचार्य माघनन्दि के समय में, कोल्लापुर के राजसिंहासन पर वीर शिरोमणि राजाधिराज महाराजा गण्डादित्य प्रासीन था । उसको सुविशाल चतुरंगिणी सेना का सेनापति निम्बदेव नामक सामन्त था । सेनापति निम्बदेव उच्च कोटि का रणनीति - विशारद यशस्वी योद्धा था । 770 मुनि की 159 प्रभाव
एक दिन महाराजा गण्डादित्य अपने वशवर्ती राजाओं, सामन्तों एवं प्रधानों के साथ राजसभा में बैठा हुआ था । धर्म चर्चा के प्रसंग में चक्रवर्ती भरत के वैभव, उनके द्वारा निर्मित करवाये गये चैत्यालयों, प्रतिष्ठा विधि आदि के विवरण सुनकर राजा गण्डादित्य श्रतीव प्रमुदित हुआ । श्रवसर के ज्ञाता (सेनापति निम्बदेव ने अपने स्वामी को परम प्रसन्न मुद्रा में देखकर उनसे निवेदन किया"राज राजेश्वर ! बड़े-बड़े राजा-महाराजा आपके चरणों में मस्तक झुकाते हैं । आपका ऐश्वर्य एवं वैभव अनुपम है। इस कलिकाल में प्राप ही चक्रवर्ती हैं । श्रतः आप भी भरत चक्रवर्ती के समान चैत्यादि का निर्माण प्रतिष्ठा आदि धर्म कार्यों से जैनधर्म की अभिवृद्धि कीजिये ।”
अपने सेनापति का सुझाव गण्डादित्य को प्रत्यन्त रुचिकर लगा | उसने अपने पुरोहित एवं प्रधानों को तत्काल प्रादेश दिया कि चैत्यालयों का निर्माण करवाया जाय । महाराजा गण्डादित्य के आदेशानुसार स्थान-स्थान पर चैत्यों के योग्य सभी भांति श्रेष्ठ भूमि के चयन के साथ ही चैत्यों के निर्माण का कार्य प्रारम्भ किया गया । और इस प्रकार कुछ ही समय में कोल्लापुर नगर के विभिन्न भागों में, महाराज गण्डादित्य की आकांक्षा के अनुरूप कुल मिलाकर ७७० सुन्दर चैत्यों का निर्माण सम्पन्न हुआ । अपनी इच्छा के अनुरूप चैत्य निर्माणकार्य के सम्पन्न होने पर महाराजा गण्डादित्य अपने सेनापति प्रादि प्रधानों के साथ प्राचार्य माघ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org