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हमें अत्यन्त प्रसन्नता है कि यह खोज एवं शोध कार्य करने पर पता लगा कि वस्तुतः दक्षिणापथ तो उत्तरापथ से भी किन्हीं अर्थों में कहीं अधिक ही जैन धर्म का सहस्राब्दियों तक एक प्रमुख एवं गौरवशाली केन्द्र रहा।
पर इस खोज कार्य को प्रारम्भ करने में कुछ अनावश्यक विलम्ब भी हुआ । इतिहास लेखक श्री राठौड़ को बीच-बीच में इतिहास लेखन के कार्य से हटाकर अन्य साहित्य प्रकाशन आदि कार्यों में एवं सन्त मुनियों के प्रारम्भिक शिक्षण कार्य में भी लगना पड़ा। समाज द्वारा आवश्यक समझकर उन्हें गजेन्द्र प्रवचन माला को प्रारम्भ करने का कार्य सौंपा गया, जिसे उन्होंने बड़ी लगन और विद्वत्ता के साथ सम्पन्न किया एवं उसकी सुदृढ़ नींव भी डाल दी। हमें प्रसन्नता है कि उस सुदृढ़ नींव पर खड़ी की गई इस प्रवचन माला के कई भाग एवं उन भागों के कुछ नये संस्करण भी आज तक प्रकाशित हो चुके हैं। प्रवचन माला के प्रकाशन को इस स्थिति में लाने का सारा श्रेय राठौड़ महोदय को एवं इनके एक अनन्य स्नेही एवं सहयोगी श्री प्रेमराजजी बोगावत को भी जाता है। समाज इसके लिए इनके प्रति अपना हार्दिक आभार प्रकट करता है।
मुनियों के शिक्षण कार्य को भी सुन्दर गति देने का श्रेय श्री राठौड़ सा. को जाता है। समाज इसके लिए भी उनका उपकृत है।
इसी बीच जैन धर्म के मौलिक इतिहास के प्रथम भाग के परिवर्द्धित द्वितीय संस्करण के लेखन और प्रकाशन कार्य में भी राठौड़ सा. को लगना पड़ा क्योंकि यह कार्य पूरा करना अन्यों के लिए सम्भव नहीं था हालांकि इसमें सहयोग देने हेतु आचार्यश्री के सुयोग्य शिष्य जो वर्तमान में आचार्य प्रवर श्री हीराचन्द्र जी म.सा. के नाम से प्रसिद्ध है, भी लम्बे समय तक इसमें व्यस्त रहे।
अन्त में ईस्वी सन् १९८० में आचार्य श्री का चातुर्मासावास मद्रास नगर में हुआ। दक्षिणापथ में शोधकार्य प्रारम्भ करने के लिए यह एक सुअवसर मिला। आप श्री के दैनन्दिन मार्ग दर्शन में यह शोध कार्य प्रारम्भ किया गया। गवर्नमेन्ट ओरियन्टल मैन्स्क्रिप्ट्स लाइब्रेरी (मद्रास यूनीवर्सिटी) में इसके लिए खोज करते समय बड़ी महत्वपूर्ण आशातीत उपयुक्त सामग्री वहा से प्राप्त हुई। कन्नीमरा गवर्नमेन्ट लाइब्रेरी इग्मोर (मद्रास) से भी जैनधर्म के इतिहास सम्बन्धी जरनल्स एपिग्राफिकाज और एन्टीक्वीटीज आदि के रूप में हजारों पृष्ठों की ऐतिहासिक सामग्री का संकलन किया गया जो आगे चलकर बड़ा उपयोगी सिद्ध हुआ। श्रमण संहार चरितम् आदि मध्य युगीन शैव कृतियों की फोटो कापियां भी ली गई।
इतनी सारी सामग्री प्राप्त करने पर भी कतिपय शताब्दियों पूर्व विलुप्त हुई यापनीय परम्परा के सम्बन्ध में सामग्री का अभाव अनुभव हुआ जिसके बारे में इतिहास के
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