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________________ १४८ ] २. दूसरा उल्लेख इस प्रकार है : वसन्तकीर्ति के समय के सम्बन्ध में सूचना देने वाला बलात्कार गण मन्दिर, अंजनगांव का उपरिवरिंगत केवल एक ही लेख है, और वह लेख है सं . १२६४ का । ऐसी स्थिति में वि. सं. १२६४ में हुए वसन्तकीर्ति को भट्टारक परम्परा का संस्थापक प्राचार्य मानना वस्तुतः किसी भी दृष्टि से उचित नहीं ठहराया जा सकता । क्योंकि विक्रम की १३ वीं शती से बहुत पहले की अनेक ग्रन्थप्रशस्तियों एवं लेखों से यह स्पष्टतः प्रमाणित होता है कि इससे अनेक शताब्दियों पूर्व भट्टारक परम्परा के अनेक आचार्यों ने अनेकों महत्वपूर्ण ग्रन्थों की रचनाएं की थीं, जिनमें भट्टारक जिनसेन और भट्टारक गुणभद्र के नाम उल्लेखनीय हैं । 3. भट्टारक वीरसेन ने विक्रम सं. ८३० में षट्खण्डागम - टीका धवला की, भट्टारक जिनसेन ने शक सं. ७५६ (वि. सं. ८६४ ) में कषाय पाहुड की टीका जय धवला की और भट्टारक गुणचन्द्र ने शक सं. ८२० (वि. सं. ६५५) उत्तर पुराण की रचना की थी । ऐसी स्थिति में वसंतकीर्ति स्वामी ने भट्टारक सम्प्रदाय की स्थापना की, यह कथन तो नितांत अविश्वसनीय एवं अप्रामाणिक ही सिद्ध होता है । प्राचार्य देवसेन द्वारा दर्शन सार में किया गया उपर्युल्लिखित उल्लेख स्पष्टतः द्रविड़ संघ की उत्पत्ति के सम्बन्ध में है न कि भट्टारक परम्परा की उत्पत्ति के सम्बन्ध में । अतः दर्शनशार के इस उल्लेख से भट्टारक परम्परा के प्रादुर्भाव का समय निर्णीत करने का प्रयास कल्पना की उडान से अधिक और कोई महत्व नहीं रखता । १. 'भट्टारक सम्प्रदाय' - लेखांक २२४ पृ० ८६ ...भट्टारएण टीका लिहिएसा वीरसेोरण || सहि सासिय, विवक्रमरायम्हि एस संगरमो । पासे सुतेरसीए, भावविलग्गे धवलपकखे || धवला प्रशस्तिmaraft समधिक प्तशताब्देषु शकनरेन्द्रस्य । ममतीतेषु समाप्ता, जयधवला प्राभृतव्याख्या ॥ 5. | जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ३ सैद्धान्तिक भयकीर्तिर्वनवासी महातपा । वसन्तकीर्तिव्याघ्रांह्रिसेवितः शीलसागरः ॥ २१ ॥ ' भद्रसूरिदं प्रहीण कालांनुराधे ||२०|| शकनृपकालाभ्यन्तर विंशत्यधिकाष्टशतमिताव्दान्ते । ...........................................................................******* Jain Education International - कसायपाहुड टीका जयधवला - प्रशस्ति ।। ३५।। 1 प्राप्तज्यं सर्वसारं जगति विजयते पुण्यमेतत् पुराणम् ||३६|| For Private & Personal Use Only - उत्तरपुराण - प्रशस्ति www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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