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________________ भट्टारक परम्परा । [ १३६ ६५. देवेन्द्रकीर्ति (१७७०) १६. महेन्द्रकीर्ति (१७९२) १७. क्षेमेन्द्रकीर्ति (१८१५) ६८. सुरेन्द्रकीर्ति (१८२२) ६६. सुखेन्द्रकीति (१८५६) १००. नयनकीति (१८७६) १०१. देवेन्द्रकीर्ति (१८८३) १०२. महेन्द्रकीर्ति (१९३८) नागौर भट्टारकों की नामावली :१. रत्लकीति (१५८१) २. भूवनकीर्ति (१५८६) ३. धर्मकीति (१५६०) ४. विशालकीति (१६०१) ५. लक्ष्मीचन्द्र [........] ६. सहस्रकीर्ति ७. नेमीचन्द्र ८. यशकीर्ति ९. भुवनकीर्ति १०. श्री भूषण ११. धर्मचन्द्र १२. देवेन्द्रकीर्ति १३. अमरेन्द्रकीति १४. रत्नकीर्ति १५. ज्ञान भूषण १६. चन्द्रकीति १७. पद्मनन्दि १८. सकल भूषण ६१. सहस्रकीर्ति २०. अनन्त कीति २१. हर्षकीर्ति २२. विद्या भूषण २३. हेमकीर्ति ---यह प्राचार्य १६१० माघ शुक्ला द्वितीया सोमवार को पट्ट पर बैठे । इनके पश्चात् २४. क्षेमेन्द्रकीर्ति २५. मुनीन्द्रकीति २६. कनककीर्ति नन्दि संघ की यह पट्टावलि वस्तुतः भट्टारक परम्परा की मूल पट्टावली है । इस पट्टावली के क्रम संख्या 3 पर उल्लिखित आचार्य माघनन्दी नन्दि संघ के मूल पुरुष अथवा प्राचार्य थे । और उनके नन्दी-अन्त नाम के आधार पर इस संघ का नाम नन्दि संघ प्रचलित हुआ । इस पट्टावली के सभी प्राचार्यों के लिये इसमें मात बार पट्टाधीश विशेषरण और २ बार भट्रारक विशेषरण का प्रयोग किया गया है। भट्रारक परम्परा के बलात्कार गरण की पट्टावली में भी इस परम्परा के भटारकों के पूर्णतः वे ही नाम दिये हैं जो इसमें हैं।' अनेक शिलालेखों से भी इस बात की पुष्टि होती है कि इस पट्टावली में जिन आचार्यों के नाम दिये हुए हैं वे भट्टारक थे। क्रम सं० ८४ पर उल्लिखित पद्यनन्दी का पट्टाभिषेक उनके गुरु प्रभाचन्द्र ने किया ।। इन्हीं भट्टारक पद्मनन्दी के तीन शिष्यों से तीन भट्टारक परम्पराए और उनसे अनेक शाखाए प्रणाखाए प्रचलित हुई। 1. भट्टारक सम्प्रदाय' (जैन मंस्कृति संरक्षक संघ, गोलापुर, पृष्ठ २) २ वही पृष्ठ ६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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