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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ ५६. विद्याचन्द्र (११७०)। ६०. सूरचन्द्र (११७६) ६१. माघनन्दि (११८४) ६२. ज्ञाननन्दि (११८८) ६३. गंगकीर्ति (११६६) ६४. सिंहकीर्ति (१२०६)
ये १२ आचार्य बारां के पट्टाधीश हुए । ६५. हेमकीर्ति (१२०९) ६६. चारुनन्दि (१२१६) ६७. नेमिनन्दि (१२२३) ६८. नाभिकीर्ति (१२३०) ६६. नरेन्द्रकीर्ति (१२३२) ७०. श्री चन्द्र (१२४१) ७१. पद्म (१२४८)
७२. वर्द्धमानकीर्ति (१२५३) ७३. अकलंकचन्द्र (१२५६) ७४. ललितकीति (१२५७) ७५. केशवचन्द्र (१२६१) ७६. चारुकीति (१२६२) ७७. अभयकीर्ति (१२६४) ७८. वसन्तकीर्ति (१२६४)'
इण्डियन एण्टीक्वेरी की जो पट्टावली मिली है, उसमें उपर्युक्त १४ आचार्यों का पट्ट ग्वालियर में होना लिखा है किन्तु वसुनन्दी श्रावकाचार में इनका चित्तौड़ में होना लिखा है। परन्तु चित्तौड़ के भट्टारकों की अलग की पट्रावली है, उसमें ये नाम नहीं पाये जाते । सम्भव है कि ये प्राचार्य ग्वालियर में ही हुए हैं । उनको ग्वालियर की पट्टावली से मिलाने पर निर्णय किया जा सकता है । ७६. प्रख्यातकीर्ति (१२६६) ८०. शुभकीर्ति. (१२६८) ८१. धर्मचन्द्र (१२७१) ८२. रत्नकीर्ति (१२६६) ८३. प्रभाचन्द्र (१३१०) ये ५ प्राचार्य अजमेर में हुए । ८४. पद्मनन्दि (१३८५)
८५. शुभचन्द्र (१४५०) ८६. जिनचन्द्र (१५०७) ये ३ आचार्य दिल्ली में पट्टाधीश हुए ।
. इनके पश्चात् पट्ट २ भागों में विभक्त हो गया। एक गद्दी नागौर में स्थापित हुई और दूसरी चित्तौड़ में । .
चित्तौड़ पट्ट के आचार्यों के नाम इस प्रकार हैं :८७. प्रभाचन्द्र (१५७१) ८८. धर्मचन्द्र (१५८१) ८६. ललितकीर्ति (१६०३) १०. चन्द्रकीर्ति (१६२२) ६१. देवेन्द्रकीर्ति (१६६२) १२. नरेन्द्रकीर्ति (१६६१) ६३. सुरेन्द्रकीर्ति (१७२२) ६४. जगत्कीति (१७३३) १. कलौ किल म्लेच्छादयो नग्नं दृष्ट्वोपद्रवं यतोनां कुर्वन्ति तेन मण्डपदुर्ग (माण्डलगढ़-मेवाड
गजस्थान) श्री वमन्त कीतिना स्वामिना चर्यादि वेलायां तट्टी मादरादिकेन शरीरमान्छा चर्यादिकं कृत्वा पुनस्तन्मुञ्चतीत्युपदेशः कृतः मंयमिनां इत्यपवादवेषः ।
पटप्राभृतटीका श्र त मागर सूरीया, पृष्ट २१For Private & Personal Use Only
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