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________________ भट्टारक परम्परा ] [ १२१ अनन्त जीव समूहों का घात किया जाता है, किशोर-किशोरियों, तरुण-तरुणियों को विवाह के गठबन्धन में जोड़ा जाता है। भट्रारक परम्परा का जन्म किस समय हमा--इस सम्बन्ध में इतिहास के विद्वान् अद्यावधि किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पाये हैं। प्रायः सभी विद्वान् इस प्रश्न के सम्बन्ध में एक स्वर से यही कहते आये हैं कि भट्टारक परम्परा के प्रादुर्भाव काल के सम्बन्ध में अभी तक कोई ठोस प्रमाण उपलब्ध न होने के कारण साधिकारिक रूप में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। किन्तु जैन वाङमय का सूक्ष्म दृष्टि से अध्ययन करने पर कतिपय ऐसे तथ्य उपलब्ध होते हैं, जिनसे भट्टारक परम्परा के प्रादुर्भाव काल का निर्णय करने में बड़ी सहायता मिलती है। उन तथ्यों में से पहला तथ्य है लिंग-पाहड़ की उपयुल्लिखित गाथा का अंश । लिंग-पाहुड़ के सम्बन्ध में मान्यता है कि यह आचार्य कुन्द-कुन्द की रचना है और लिंग-पाहुड़ की इस गाथा में उल्लिखित विवरण से यह भी निर्विवाद रूपेण फलित हो जाता है कि आचार्य कुन्दकुन्द के समय आगमानुसार विशुद्ध मूल श्रमरणाचार से प्रतिकूल श्रमणाचार का पालन करने वाली चैत्यवासी, भट्टारक आदि परम्पराए शक्तिशाली धर्मसंघ के रूप में लोकप्रिय अथवा चर्चा का विषय बन चुकी थीं। ऐसी स्थिति में इन परम्पराओं के प्रादुर्भाव, काल को निर्धारित करने से पहले प्राचार्य कुन्द-कुन्द के समय का निर्धारण करना परमावश्यक हो जाता है। आचार्य कुन्दकुन्द के समय के सम्बंध में पुष्ट प्रमाणों के अभाव के कारण विद्वानों में अभी तक मतैक्य नहीं हो सका है। न्यायशास्त्री पं. गजाधर लाल जी जैन' और डा. के. बी. पाठक ने कुन्दकुन्दाचार्य का समय शक संवत ४५० अर्थात वीर नि० सं. १०५५ माना है। पं. नाथूराम प्रेमी इन्हें ईसा की दूसरी तीसरी शताब्दी के पूर्व का प्राचार्य अनुमानित नहीं करते। डा. ए. एन. उपाध्ये ने प्राचार्य कुन्दकुन्द के समय के सम्बन्ध में ऊहापोह पुरस्सर एक तो ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी के उत्तरार्द्ध में ईसा की प्रथम शताब्दी के पूर्वाद्ध के बीच का, दूसरे-दूसरी शताब्दी के मध्य के पश्चात् का, तीसरे - ईसा की तीसरी शताब्दी के मध्य का और चौथे । ईसा की प्रथम दो शताब्दियों का -- इस तरह भिन्न-भिन्न समय अनुमानित करने के पश्चात् अपना अभिमत व्यक्त करते हुए लिखा है--"उपलब्ध सामग्री के इस विस्तृत पर्यवेक्षण के पश्चात् मैं विश्वास करता हूं कि कुन्दकुन्द का समय ई. सन् का प्रारम्भ है।"3 १. समय प्रात, प्रथम संस्करण, ई. सन् १९१४ की प्रस्तावना, पृष्ठ ८ २. समय प्राभत और पटप्रामृत संग्रह-माणिक्य चन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थ माला बम्बई, पुष्प १७ की प्रस्तावना, पृष्ठ १५ 3. कुन्दकुन्द प्रामृत संग्रह की प्राग्ल भाषा में प्रस्तावना, पृष्ठ ३६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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