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________________ विकृतियों के विकास की पृष्ठभूमि ] आरंभेसु पसत्ता, सिद्धन्त - परंमुहा विसयगिद्धा । मुत्तं मुरिणो गोयम ! वसिज्ज मज्झे सुविहियारणं ।। १०४ ।। अर्थात् जो साघु आरम्भ-समारम्भ के कार्यों में प्रलिप्त-प्रसक्त अथवा संलग्न हैं, जो सर्वज्ञ तीर्थङ्कर प्रभु द्वारा प्ररूपित मौर गणधरों द्वारा ग्रथित सिद्धान्तों से विपरीत आचरण एवं उपदेश करते हैं प्रौर जो विषय कषायों के दलदल में फंसे हुए हैं, ऐसे नाममात्र के साधुओंों की संगति का परित्याग कर हे गौतम! सुविहित साधुत्रों के बीच में रहना चाहिये । " तित्थोगाली पइण्णय " नामक प्राचीन ग्रंथ में सुविहित श्रमरणों के उल्लेख के साथ ही साथ "सुविहित गरिए" (सुविहित प्राचार्य ) का भी उल्लेख विद्यमान है । सुविहित श्रमरणों सम्बन्धी तित्थोगाली पइण्णय का उल्लेख इस प्रकार है : पाडिवतो नामेरा अरणगारो, तह य सुविहिया समरणा । दुक्खपरिमोयट्ठा, छट्ठट्ठम तवे काहिन्ति ॥ ६८२ ॥ [ १०७ अर्थात् - पाडिवत ( प्रातिव्रत ) नामक अरणगार ( प्राचार्य) और सुविहित श्रमण गरण सब प्रकार के दुःखों का अन्त करने के लिए बेले और तेले की तपस्याएँ करेंगे | सुविहित गरि ( प्राचार्य ) के सम्बन्ध में तित्थोगाली पइण्णय का उल्लेख इस प्रकार है :-- को विकयमभातो, समणो समरणगुणनिउ चितइम्रो । पुच्छर गरिंग सुविहियं प्रइसयनारिंग महामत्तं ।। ७०२ ।। ' अर्थात् - श्रमण गुणों ( श्रमणों के प्राचार) की परिपालना में कुशल और चितनशील कोई एक श्रमरण स्वाध्याय करने के पश्चात् प्रतिशयज्ञानी और महान् सत्वशाली सुविहित प्राचार्य से प्रश्न करता है । महानिशीथ सूत्र, गच्छाचार पइण्णय और तित्थोगाली पइण्णय इन तीनों ग्रन्थों के रचनाकाल और इन तोनों के रचनाकारों के सम्बन्ध में पुरातत्वविद् प्रथवा विद्वान् अभी तक किसी निश्चित निर्णय पर नहीं पहुंच पायें हैं । तथापि यह मुनिश्चितरूपेण सिद्ध हो गया है कि सड़ जाने और दीमकों द्वारा खा लिये जाने के कारण खण्ड- विखण्डित हुए महानिशीथ सूत्र की जीर्ण प्रति से याकिनी महत्तरासूनुः पं० श्री कल्याण विजयजी म० एवं गजसिंह राठोड़ द्वारा सम्पादित "तित्थोगाली पइण्णय" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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