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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ३
अफवाह फैला दी कि दुर्लभराज के राज्य को हथियाने की इच्छा से मुनिवेष में किसी शत्रु राजा के गुप्तचर प्रनहिलपुरपत्तन में प्राये हुए हैं। जब दुर्लभराज के कानों तक यह बात पहुंची तो उन्होंने अपने राजपुरुषों से पूछा कि वे गुप्तचर कहां हैं ? राजपुरुषों ने कहा - "देव ! वे लोग आपके राजपुरोहित के घर में ठहरे हुए हैं।"
महाराज दुर्लभराज ने तत्काल राजपुरोहित को बुलाकर कहा - " नगर के घर-घर में यह बात फैली हुई है कि किसी शत्रुराजा के गुप्तचर मुनिवेष में यहां आये हुए हैं। यदि वे वस्तुतः किसी के गुप्तचर हैं तो उन्हें आपने अपने घर में स्थान किस कारण दिया ?" राजपुरोहित ने दुर्लभराज से निवेदन किया - "देव ! उन लोगों पर इस प्रकार का दुष्टतापूर्ण दूषरण किसने लगाया है ? मैं लाख पारुष्य दांव पर लगाता हूं कि ऐसी बात कहने वाला कोई भी व्यक्ति यदि उनमें एक भी दूषण सिद्ध करने की क्षमता रखता हो तो सम्मुख आये और अपनी बात को सिद्ध करे ।” पूरी राज्यसभा में सन्नाटा सा छा गया। राजपुरोहित की चुनौती को स्वीकार करने वाला कोई भी व्यक्ति वहां दृष्टिगत नहीं हुआ। पुरोहित की चुनौती को स्वीकार करने के लिये जब कोई भी व्यक्ति सम्मुख नहीं आया तो राजपुरोहित ने कहा - "राजन् ! वे सभी साधु वस्तुतः सशरीरी धर्म के समान हैं, उनमें किसी प्रकार का कोई भी दूषरण नहीं है ।"
राजपुरोहित की बात सुनकर राजा दुर्लभराज पूर्णत: आश्वस्त एवं सन्तुष्ट हुए ।
राजसभा में उपस्थित सूराचार्य श्रादि चैत्यवासी प्राचार्यों ने राज-पुरोहित की बात सुन कर परस्पर मन्त्ररणा की कि इन वसतिवासी साधुओं को येन केन कारेण वाद में पराजित कर यहां से निकलवा देना चाहिये । रोग को उठते ही नष्ट कर देना, यही बुद्धिमत्ता है । इस प्रकार विचार कर उन चैत्यवासी प्राचार्यों ने राजपुरोहित से कहा - " आपके घर में ठहरे हुए यतियों से हम विचार चर्चा करना चाहते हैं ।"
राजपुरोहित ने उत्तर दिया- "उनको पूछकर जैसी भी स्थिति होगी उससे मैं आपको अवगत करा दूंगा ।"
राजपुरोहित घर गया और वर्द्धमान सूरि को वस्तुस्थिति से अवगत कराते हुए कहा - " महात्मन् ! आपके विपक्षी आपके साथ चर्चा करना चाहते हैं ।"
श्रीवद्ध मानसूरि ने कहा - " बिलकुल ठीक है । आपको इसमें किंचित् मात्र भी डरने की आवश्यकता नहीं । आप तो उनसे केवल यहीं कहिए कि यदि आप शास्त्रार्थ करना चाहते हैं तो महाराज दुर्लभराज के समक्ष जो स्थान उन्हें उपयुक्त लगे उसी स्थान पर वे हमारे साथ वाद-विवाद करें ।"
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