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________________ ६२ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ स्वामित्व में ग्रहण नहीं करेंगे तो चैत्यों के उच्छेद एवं जिन शासन के लुप्त होने जैसा प्रसंग उपस्थित हो सकता है।' (७) साध ऐसे गादी-तकियों एवं सिंहासनों पर भी बैठे, जिनका कि प्रतिलेखन-प्रमार्जन संभव नहीं । इस प्रकार के गादी-तकियों तथा मुन्दर सिंहासनों पर साधुनों के बैठने से प्रवचन की प्रभावना होती है । गणधर देव भी राजाओं द्वारा दिये गये सिंहासनों अथवा पादपीठों पर बैठते थे। एक राजा के अन्तःपुर की रानियों ने प्रार्य वज्र स्वामी की व्याख्यान-लब्धि की तो प्रशंसा को किन्तु यह कहा कि उनकी रूप-सम्पदा अति साधारण है। इस पर वज्र स्वामी ने दूसरे दिन यति के लिये अकल्पनीय सोने के कमलाकार सिहासन पर बैठ कर अपने भव्य व्यक्तित्व को प्रकट करते हुए देशना दी। उसके परिणामस्वरूप प्रवचन की प्रभावना हुई । इससे सिद्ध है कि प्राचार्यों को प्रवचन की प्रभावना हेतु गादी-तकिये, सिंहासन आदि पर बैठना चाहिये ।। (८) साधु अपने श्रावकों को अपने ही गच्छ में रहने का (शाम, दाम, दण्ड, भेद आदि उपायों से) आग्रह करे । अन्यथा साधुओं द्वारा श्रावकों को अपनी अपनी ओर खींचते रहने से बड़ा ही अशोभनीय वातावरण उत्पन्न हो जायेगा। पारस्परिक कलह के कारण जिन-शासन की हानि होगी। अतः साधुओं को चाहिये कि अपने गच्छ के श्रावकों को अपने गच्छ में ही सदा सुस्थिर बने रहने का प्राग्रह करें। १. (क) स्वीकारोऽर्थगृहस्थचैत्यसदन ...........|| (ख) चैत्यस्वीकरणे तु गहिततमं स्यात् माठपत्यं यते रिस्येवं व्रतवैरिणीति ममता युक्ता न मुक्त यथिनाम् ।।१०।। २. (क)........ईषत् प्रेक्षिताद्यासनम् । "॥५॥ (ख) भवति नियतमत्रासंयम : स्याविभूषा, नृपतिककुदमेतल्लोकहासश्च भिक्षोः । स्फुटतर इह संगः सातशीलत्वमुच्चरिति न खलु मुमुक्षोः संगतं गब्दिकादि ॥११।। दुःप्रापा गुरुकर्मसंचयवतां सद्धर्मबुद्धि नृणां, जातायामपि दुर्लभः शुभगुरुः प्राप्तः स पुण्येन चेत् । कतुन स्वहितं तथाप्यलममी गच्छस्थिति व्याहृता: कं ब्रूमः कमिहाश्रयेमहि कमाराध्येम किं कुर्महे ॥ १४ ॥ -~-संघपट्टक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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