SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 819
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकीर्णक पामान्य पूर्वधर-काल : देवद्धि क्षमाश्रमण ६८६ १० प्रकीर्णक :१ चतुश्शरण प्रकीर्णक ६ चन्द्रविद्यक २ अातुर प्रत्याख्यान ७ देवेन्द्रस्तव ३ भक्त प्रत्याख्यान ८ गरिणविद्या ४ संस्तार प्रकीर्णक ६ महाप्रत्याख्यान ५ तंदुल वैचारिक १० मरणसमाधि ६ छेवसूत्र :१ निशीथ ४ व्यवहार २ महानिशीथ ५ दशाश्रुतस्कंध ३ वृहत्कल्प ६ जीतकल्प १ दशवैकालिकसूत्र २ उत्तराध्ययन ३ अनुयोगद्वार ४ नन्दीसूत्र २पलिका १ प्रोपनियुक्ति - २ पिण्डनियुक्ति कुछ लेखक नन्दी और अनुयोगद्वार सूत्र को चूलिका मानते हैं । १. प्रावश्यक इनमें से १० प्रकीर्णक, अंतिम २ खेदसूत्र और २ चूलिकामों के तिरिक्त ३२ सूत्रों को स्थानकवासी एवं तेरापंथ सम्प्रदाय मान्य करती हैं। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय ४५ को प्रामाणिक स्वीकार करती है। नन्दीसूत्र-गत कालिक उत्कालिक सूत्रों की तालिका में १० में से ४ प्रकीर्णक, २ छेदसूत्र एवं २ चूलिकाएं (मोनियुक्ति, पिण्डनियुक्ति) नहीं हैं और ऋषिभाषित का नाम जो कि नंदी सूत्र की तालिका में है, वह वर्तमान ४५ प्रागमों की संख्या में नहीं है। संभव है ४४-४५ पागम और ज्योतिषकरंडक प्रादि वीर नि. सं० १८० में हई वल्लभी परिषद में लिखे गये हों। विद्वान् इतिहासज्ञ पुरातन सामग्री के प्राधार पर इस सम्बन्ध में गम्भीरतापूर्वक गवेषणा करें तो सही तथ्य प्रकट हो सकता है। स्पष्टीकरण मूल मूत्रों की संख्या और क्रम के सम्बन्ध में विभिन्न मान्यताएं उपलब्ध होती हैं। कुछ विद्वानों ने ३ मूल सूत्र माने हैं तो कहीं ४ की संख्या उपलब्ध होती है। क्रम की दृष्टि से उत्तराध्ययन को पहला स्थान दे कर फिर आवश्यक और दशवकालिक बताया गया है जब कि दूसरी ओर उत्तराध्ययन, दशवैकालिक और आवश्यक इस प्रकार मूलसूत्रों की संख्या तीन की गई है। पिण्डनियुक्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy