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________________ ६९० जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग स्पष्टीकरण तथा, कहीं-कहीं पिण्डनियुक्ति और प्रोपनियुक्ति को संयुक्त मान कर चार की संख्या मानी गई है। स्थानकवासी परम्परा के अनुसार आवश्यक और पिण्डनिर्यक्ति के स्थान पर नंदी और अनयोगद्वार को मिला कर चार मूल सूत्र माने गये हैं। जब कि दूसरी परम्परा नन्दी और अनुयोगद्वार को चूलिका सूत्र के रूप में मान्य करती है। देवद्धि क्षमाश्रमरण का स्वर्गगमन और पूर्व-ज्ञान का विच्छेद वाचनाचार्य आर्य देवद्धि क्षमाश्रमण के जन्म, श्रमण-दीक्षा, गणाचार्य एवं वाचनाचार्य-काल के सम्बन्ध में कोई प्रामाणिक उल्लेख आज उपलब्ध नहीं है। इसी प्रकार अापके स्वर्गारोहरण-काल के सम्बन्ध में भी कोई स्पष्ट उल्लेख दृष्टिगोचर नहीं होता। परम्परागत मान्यतानुसार आर्य देर्वाद्ध क्षमाश्रमरण अंतिम पूर्वधर माने गये हैं। जैसा कि पहले बताया जा चुका है भगवती-सूत्र के उल्लेखानुसार भगवान् महावीर के निर्वाण से १००० वर्ष पश्चात् पूर्वज्ञान का विच्छेद माना गया है। ऐसी स्थिति में एक प्रकार से यह सुनिश्चित हो जाता है कि अंतिम पूर्वधर प्राचार्य देवद्धि क्षमाश्रमरण वीर नि० सं० १००० में स्वर्गस्थ हए। इसके उपरान्त भी कतिपय पट्टावलीकारों का अभिमत है कि अंतिम पूर्वधर यूगप्रधानाचार्य सत्यमित्र थे तथा सत्यमित्र का वीर नि० सं० १००० में और देवद्धि क्षमाश्रमण का उनसे पहले वीर नि० सं० ६६० में स्वर्गगमन हुआ। 'तित्थोगालिय पइन्ना' की हस्तलिखित प्रति का अध्ययन करते हुए हमें दो गाथाएं दृष्टिगोचर हुईं, जिनमें स्पष्टतः उल्लेख है - "भगवान महावीर के मोक्षगमनामन्तर १००० वर्ष व्यतीत हो जाने पर अन्तिम वाचक वृषम (वाचनाचार्य) के साथ पूर्वज्ञान विलुप्त हो जायगा। वर्द्धमान भगवान् के निर्वाण के १००० वर्ष पूर्ण होते ही परिपाटी से जिसको जितना पूर्वज्ञान प्राप्त होगा, वह नष्ट हो जायगा।" वे गाथाएं इस प्रकार हैं : वोलीणम्मि सहस्से, वरिसारण वीरमोक्खगमणाम्रो । उत्तरवायग - वसभे, पूवगयस्स भवे छेदो॥८०५।। वरिस सहस्से पुण्गो, तित्थोगालीए वड्ढमारणस्स । नासिहि पुत्वगतं, अपरिवाडीए जं जस्स ।।८०६।। इन गाथानों में देवद्धि क्षमाश्रमरण का नाम तो स्पष्टतः उल्लिखित नहीं है परन्तु प्रथम गाथा के - "उत्तरवायगवसभे, पुव्वगयस्स भवे छेदो" - इन पदों में प्रयुक्त-'उत्तर-वाचक-वृषभ' पद अंतिम वाचनाचार्य प्रार्य देवद्धिगरणी क्षमाश्रमण का ही बोधक है। क्योंकि समस्त जैन वाङमय में देवद्धि को ही सर्व सम्मत रूपेण अन्तिम वाचनाचार्य स्वीकार किया गया है। तित्थोगाली पइन्ना की एक गाथा में प्रार्य सत्यमित्र नामक एक मुनिपुंगव को अंतिम दशपूर्वधर बताया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि तित्थोगाली पइन्ना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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