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चन्द्रगुप्त द्वितीय) सामान्य पूर्वधर-काल : आर्य मूतदिन .
६७१ ही गुप्त साम्राज्य के सिंहासन पर आसीन हुआ। इन दोनों सम्राटों के बीच में रामगुप्त नाम का कोई गुप्त राजा नहीं हुआ।
चन्द्रगुप्त (द्वितीय) बड़ा पराक्रमी एवं प्रतापी राजा हुआ है। उसने .मालवा, सौराष्ट्र और गुजरात के शक महाक्षत्रपों को परास्त एवं शक महाक्षत्रप सत्यसिंह के पुत्र रुद्रसिंह (तृतीय) को मौत के घाट उतार कर वीर नि० सं० ६२७ तदनुसार ई० सन् ४०० के आसपास भारत से शकों के शासन का सदा के लिये अन्त किया। शकों के राज्य का अन्त करने के कारण प्रजाजनों ने उसे शकारि विक्रमादित्य के विरुद से विभूषित किया। वह बड़ा न्यायप्रिय, सच्चरित्र और विद्वान् सम्राट् था। उसने सम्पूर्ण भारत को एक सार्वभौम सत्तासम्पन्न शासनसूत्र में बांधा। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के निम्नलिखित ७ अभिलेख अद्यावधि उपलब्ध हुए हैं :
(१) मथुरा का गु० सं० ६१ (ई० सन् ३८०) का स्तम्भलेख । (२) उदयगिरि का गु० सं० ८२ का गहा-लेख । (३) गढवा का गु० सं० ८८ का शिलालेख । (४) सांची का गु० सं० १३ का वेष्टनी पर खुदा लेख । (५) उदयगिरि का बिना तिथि का गहा (गहा सं० ७) लेख । (६) मथुरा का बिना तिथि का खण्डित शिलालेख, जिसमें चन्द्रगुप्त तक गुप्तवंशी राजाओं की वंशावली उकित है। (७) मेहरौली का बिना तिथि का लोह-स्तम्भलेख ।
____मेहरौली का लोहस्तम्भलेख सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना गया है। इसमें चन्द्र नामक राजा द्वारा बंगाल में शत्रुओं की सामूहिक शक्ति को पराजित किए जाने, समुद्र के सात मुखों तुल्य सात नदियों वाले प्रदेश पंजाब को पार कर बालिकों को जीतने एवं विष्णु की भक्ति से प्रेरित हो विष्णुपद पर्वत पर विष्णु की ध्वजा के प्रारोपित किये जाने का उल्लेख हैं।'
' यस्योद्वर्तयत: प्रतीपमुरसा शत्रुन् समेत्यागतान्, बंगेष्वाहववर्तिनोऽभिलिखिता खंगेन कीतिमुजः । तीर्खा सप्तमुखानि येन समरे सिन्धोज्जिता बालिकाः, यस्याद्याप्यधिवासते जलनिधिः वीर्यानिलदक्षिणः ।।१।। खिन्नस्येव विसृज्य गां नरपतेर्गामाश्रितस्येतरां, मूर्त्या कर्म जितावनी गतवतः कीर्त्या स्थितस्य मिती । शान्तस्येव वने हुतभुजो यस्य प्रतापो महाप्राचाप्युत्सृजति प्रणाशितरिपोः यत्नस्य शेषः मितिम् ।।२।। प्राप्तेन स्वमुजाजितं च सुचिरं चंकाध्यराज्यं मिती, चन्द्राह्वन समग्रचन्द्रसदृशीं वक्त्रश्रियं विभ्रता । तेनायं प्रणिधाय भूमिपतिना भावेन विष्णोः मतिम्, प्रांशुविष्णुपदे गिरी भगवतो विष्णोर्ध्वजः स्थापितः ।।३।।
[चन्द्र का मेहरोसी का लोहस्तम्भनेख]
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