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भारत पर सि० द्वारा प्रा०] दशपूर्वधर-काल : प्रार्य स्थलभद्र पर भारतीयों द्वारा किये गये भीषण प्रतिरोध और उससे हुई अपनी गहरी क्षति को देख कर यूनानी सेना हतोत्साहित हो गई। किन्तु सिकन्दर समस्त भारतवर्ष पर अपनी विजय वैजयन्ती फहराने का दृढ़ संकल्प ले कर अपने देश से निकला था। उसने निरुत्साहित सैनिकों को तूफान की तरह आगे बढ़ने के लिये प्रोत्साहित किया। सिकन्दर की सेना ने आगे बढ़ना चाहा पर क्षुद्रक और मालव गणतन्त्रों की संयुक्त सेना ने उसे सिन्धु और चिनाब के संगम के रणांगण में ललकारा। यहां यूनानी सेना को बहत बड़ी क्षति उठानी पड़ी। इस युद्ध में मालवों से लड़ते हुए सिकन्दर स्वयं आहत हो गया था। उसके घाव लगने के कारण सिकन्दर की मृत्यु की अफवाह फैल गई और भारत के विजित क्षेत्रों में भारतीयों के विद्रोह को दबाये रखने की दृष्टि से जो क्षत्रपियां स्थापित की गई थीं व यूनानी सैनिकों की बस्तियां बसाई गई थीं, उनमें से बहुत से यूनानी सैनिक सामूहिक रूप से यूनान की ओर भाग खड़े हए । सिकन्दर के सैनिकों का मनोबल भी टूट गया। उसके सैनिक अधिकारियों ने स्पष्ट शब्दों में सूचित कर दिया कि उसकी सैनिक शक्ति बहुत क्षीण हो चुकी है। बहुत बड़ी संख्या में उसके सैनिक युद्ध में मारे गये हैं तथा अनेक सैनिक रोगग्रस्त हो मर चुके हैं। अवशिष्ट सैनिकों में न पहले के समान शारीरिक शक्ति ही रही है और न मनोबल ही।
अपनी और अपने सैनिकों की वास्तविक स्थिति को देखते हुए सिकन्दर अपनी सेना के साथ विजय अभियान को बन्द कर पुनः अपने देश की ओर लोट पड़ा।
भारतीय विद्रोही प्रश्वकायनों ने सिकन्दर द्वारा नियुक्त सिन्धु के पश्चिमी प्रदेश के क्षत्रप (शासक-गवर्नर) निकानोर की हत्या कर डाली। तत्पश्चात् जिस समय सिकन्दर झेलम नदी के रास्ते से लौट रहा था, उस समय उसका एक प्रति कुशल और अनुभवी क्षत्रप फिलिप उसे यूनान के लिये विदा करने पहुंचा। सिकन्दर को विदा करने के पश्चात् जिस समय फिलिप अपनी क्षत्रपी की ओर लौट रहा था उस समय उसकी हत्या कर दी गई। जिस समय सिकन्दर के पास यह सूचना पहुंची तो उसे बड़ा गहरा आघात पहुंचा। सिकन्दर चूंकि उस समय तक बहुत दूर नहीं निकला था.प्रतः वह अगर चाहता तो विद्रोह को दबाने के लिये उस क्षेत्र में लौट सकता था पर अब वह उस स्थिति में नहीं रह गया था। तक्षशिला तथा सिन्धु एवं झेलम के संगम वाले प्रदेश का शासन जब तक कि दूसरा प्रबन्ध नहीं कर दिया जाय तब तक के लिये वह तक्षशिला के राजा को सुपुर्द कर चला गया। ज्यों-ज्यों यूनान की ओर लौटता हुआ सिकन्दर भारतीय प्रदेश को अपने पीछे छोड़ता गया त्यों-त्यों वे भारतीय प्रदेश विदेशी शासन के बूए को दूर फेंक कर स्वतन्त्र होते चले गये । बैबिलौन पहुंचते-पहुंचते सिकन्दर की ई० पूर्व जून ३२३ में मृत्यु हो गई ।। 1 In June 323 B. C. Alaxender died at Babylon and no permanent incumbent in
IV. A. Smith's Ashoka P. 1. Cambridge History, P. 428 - 1.23-8.
...Philip's place could.ever beappointed.
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