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________________ ४२० जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [भा० पर सि० द्वारा प्रा. सिकन्दर की मृत्यु के पश्चात् उसके साम्राज्य में सर्वत्र अराजकता व्याप्त हो गई। सिकन्दर के कोई सन्तान नहीं थी अतः उसके सेनापतियों ने सिकन्दर के राज्य का परस्पर बंटवारा किया। पहला बंटवारा सिकन्दर की मृत्यु के तत्काल पश्चात् ईसा पूर्व ३२३ में और दूसरा बंटवारा त्रिपाशडिंसस नामक स्थान पर ईसा पूर्व ३२१ में हमा। पर इन दोनों बंटवारों के समय सिकन्दर द्वारा विजित सिन्धु नदी के पूर्वीय प्रदेशों को यूनानी साम्राज्य की गणना में नहीं लिया गया। इससे सिद्ध होता है कि सिकन्दर की भारत में विद्यमानता के समय में ही भारतीयों द्वारा यूनानी शासन के विरुद्ध खड़ा किया गया विद्रोह बल पकड़ता गया और सिकन्दर के पाहत होकर यूनान की ओर मुंह करते ही उन प्रदेशों के निवासियों ने यूनानी गुलामी के जुए को तत्काल झटक कर सदा के लिये उतार फेंका। इस सब घटनाचक्र पर गम्भीरतापूर्वक विचार करने से यह तथ्य स्पष्टरूपेण प्रकट हो जाता है कि जो सिकन्दर एक अजेय विशालवाहिनी के साथ विश्वविजय की महत्वाकांक्षा लिये यूनान से भारत की पश्चिमोत्तर सीमा तक के प्रदेशों की अनेक शक्तिशाली राज्यसत्तामों को भूलुण्ठित करता हमा एक तीव्रगामी प्रचण्ड तूफान की तरह प्रागे बढ़ता ही गया, उसे भारतीय रणबांकुरे देशभक्तों ने पगपग पर अपने प्रतिरोध की फौलादी दीवार बनकर रोका। यह भी तथ्य है कि सार्वभौम सत्तासम्पन्न एक सशक्त और विशाल राज्य के रूप में सुसंगठित न होने के कारण पश्चिमोत्तर सीमावर्ती छोटे-छोटे राजामों और गणराज्यों की बिखरी हुई शक्ति अधिक समय तक सिकन्दर की सशक्त एवं सुविशाल वाहिनी के प्रबल प्रहारों के सम्मुख नहीं टिक सकी। इतना होने पर भी यह तो सुनिश्चित रूप से कहा जा सकता है कि उस बिखरी हुई भारतीय शक्ति ने भी अपने दृढ़ संकल्प, तीव्र प्रतिरोध मोर प्रबल प्रहारों से सिकन्दर की सेना को बहुत बड़ी क्षति पहुंचा कर तथा उसके मनोबल एवं प्रोज-तेज को समाप्तप्राय बनाकर सिकन्दर की सब महत्वाकांक्षामों पर पानी फेर दिया। यहां यह प्रश्न उपस्थित होना स्वाभाविक ही है कि भारतीय छोटे-छोटे राजा तथा गणराज्य बिना संगठित हुए अलग-अलग रूप से सिकन्दर की बड़ी सेना के साथ लड़ने के कारण अन्ततोगत्वा परास्त होते गये तो उसके पश्चात सर्वव्यापी सामूहिक विद्रोह संगठित करने वाला कोई न कोई सूत्रधार तो अवश्य होना चाहिये अन्यथा पराजित भारतीयों द्वारा एक के पश्चात् दूसरे यूनानी सत्रपों को हत्या करना एवं यूनानी साम्राज्य की जड़ों को भारत से उखाड़ फेंकना भारतीयों के लिये कभी संभव नहीं होता। ___ इस प्रश्न का हमें भारतीय वाङ्मय में तो खोजने पर भी कोई उत्तर नहीं मिलता किन्तु सिकन्दर के निपार्कस, प्रोनेसिक्रिटस पोर परिस्टोबुलस नामक तीन अधिकारियों द्वारा भारत की स्थिति के सम्बन्ध में लिखे गये विवरणों और उनके पश्चात् भारत में यूनानी राजदूत मेगास्थनीज द्वारा लिखे गये विवरणों के प्राधार पर लिखी गई विदेशी विद्वानों की रचनामों से पर्याप्त संतोषजनक उत्तर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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