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________________ ४१५ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग मारत पर सिकन्दर द्वारा प्राक्रमण प्राचार्य स्थूलभद्र के प्राचार्यत्वकाल में लगभग वीर निरिण सं० २०० तदनुसार ईसा पूर्व ३२७ में भारतवर्ष के उत्तर-पश्चिमी प्रदेशों पर यूनान के शाह सिकन्दर (एलेक्जेन्डर दी ग्रेट) ने एक प्रबल सेना लेकर आक्रमण किया। उस समय भारत के उत्तर-पश्चिमी भागों में छोटे-छोटे राज्य तथा पंजाब में विभिन्न जातियों के गणराज्य थे। मगध सम्राट् धननन्द (नवम नन्द) अपनी अत्यन्त लुब्ध प्रकृति और जनता पर अधिकाधिक करभार बढ़ाते रहने की प्रवृत्ति के कारण अपने प्रति जनता का प्रेम और विश्वास खो चुका था.। उसके अधीनस्थ अनेक राजाओं और सामन्तों ने उसके प्रति विद्रोह का झण्डा उठा अपने प्रापको स्वतन्त्र घोषित कर दिया था । गृह-कलह के कारण राजा गण एक दूसरे को नीचा दिखाने के प्रयास में लगे हुए थे। - देश में सार्वभौम सत्तासम्पन्न एक शक्तिशाली राज्य के अभाव में सिकन्दर को प्रारम्भ में अपने सैनिक अभियान में सफलता मिली । उसने हिन्दुकुश, काबुल की घाटी से लेकर सिन्धु नदी के पूर्व का इलाका तथा काश्मीर और तक्षशिला मादि भारतीय प्रदेशों पर विजयश्री प्राप्त की। छोटे-छोटे भारतीय राजाओं ने सिकन्दर के प्राक्रमण को निष्फल करने के लिये बडी वीरता के साथ प्राणों की बाजी लगा कर युद्ध किया किन्तु सिकन्दर की विशाल विजयवाहिनी के समक्ष वे बहुत अधिक समय तक नहीं टिक सके । अपने देश की स्वतन्त्रता की रक्षा के लिये बहुत बड़ा बलिदान करने और शत्रुपक्ष को भारी क्षति पहुंचाने के पश्चात् भी अन्त में उन्हें प्रात्मसमर्पण करना ही पड़ा। पंजाब की हस्तिनायन, प्रश्वकायन मादि जातियों के गणतन्त्रों ने अपने-अपने राज्यों की शक्ति से कहीं प्रषिक सेनाएं संगठित कर सिकन्दर की सेना के साथ भयंकर युद्ध किये। - यों तो सभी राजानों और गणराज्यों ने सिकन्दर की सेना के साथ बड़ी वीरता के साथ युद्ध किया पर उनमें राजा पौरव द्वारा किया गया युद्ध भारत के इतिहास में सदा विशेष उल्लेखनीय रहेगा। राजा पौरव ने अपने तीस हजार पैदल सैनिकों, चार हजार घुड़सवारों, तीन सौ रथों और २०० हाथियों की सशक्त सेना लेकर आगे बढ़ती हई सिकन्दर की सेना को रोका । राजा पौरव की सेना प्राणों की बाजी लगा कर बड़ी वीरता के साथ सिकन्दर की सेना के साथ लड़ी। यूनानी सेना को इस युद्ध में बड़ी भारी क्षति उठानी पड़ी किन्तु सहसा यूनानी सैनिकों के तीक्ष्ण तीरों की बौछारों से पौरव की हस्ति-सेना संत्रस्त होकर विगड़ खड़ी हुई और उसने पीछे की ओर तथा इधर-उधर भागते हुए बेकाबू हो स्वयं राजा पोरव की सेना को ही बड़ी क्षति पहुंचाई और इस प्रकार दुर्भाग्य से युद्ध का पासा ही पलट गया। राजा पौरव को पराजय का मुंह देखना पड़ा। जयश्री प्राप्त हो जाने पर भी सिकन्दर ने राजा पौरव की शक्ति और वीरता देखते-हए उसके साथ मैत्री करना मावश्यक समझा और उसका जीता हुमा राज्य उसे पुनः लौटा कर वह विजय-अभियान में आगे बढ़ गया। पग-पग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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