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________________ १२७ ४. समवायांग] केवलिकाल : प्रार्य सुधर्मा प्रारूढ होने तथा अंगवंश के ७७ राजाओं के दीक्षित होने का उल्लेख है। ७८ वें समवाय में बताया गया है कि गणधर अकंपित ७८ वर्ष की पूर्ण प्राय भोग कर सिद्ध । ७६ वें समवाय में बताया गया है कि छट्टी नरक के मध्य भाग से छट्टे घनोदधि के नीचे के चरमान्त का अन्तर ७६ हजार योजन है। ८० वें समवाय में भगवान श्रेयांसनाथ, त्रिपृष्ठ वासुदेव और अचल राम की ८० धनुष ऊंचाई का और त्रिपृष्ठ वासुदेव के ८० लाख वर्ष तक महाराज पद पर रहने का उल्लेख है। समवाय सं० ८१ में भगवान् कुंथुनाथ के ८१०० मनःपर्यवज्ञानी बताये गये हैं। ८२ वें समवाय में उल्लेख है कि ८२ रात्रियां बीतने पर भगवान महावीर का गर्भातर में साहरण किया गया। ८३ वें समवाय में यह बताया गया है कि भगवान् शीतलनाथ के ८३ गण और ८३ गणधर, स्थविर मण्डित के ८३ वर्ष की आयु पूर्ण कर सिद्ध होने तथा भरत चक्रवर्ती के ८३ लाख पूर्व गृहवास में रहकर केवली होने का उल्लेख है। ८४ वें समवाय में सातों नारकं पृथ्वियों के ८४ लाख नरकावासों, भगवान् ऋषभदेव की ८४ लाख पूर्व की प्रायु, भगवान् श्रेयांसनाथ द्वारा ८४ लाख वर्ष का प्रायू पूर्णकर सिद्ध होने और त्रिपृष्ठ वासुदेव के ८४ लाख वर्ष की आयु के उपभोग के अनन्तर अपइट्ठाणा नरक में जाने का उल्लेख है। इसमें यह भी वताया गया है कि पूर्व से लेकर शीर्ष प्रहेलिका तक की संख्याओं में परवर्ती संख्या अपनी पूर्ववर्तिनी संख्या से गुना अधिक होती है। इसमें भगवान् ऋषभ देव के ८४ गण, ८४ गणधर और ८४००० साधु बताये गये हैं। ८५ वें समवाय में प्राचारांग के ८५ उद्देशनकाल बताये गये हैं। ८६ वें समवाय में भगवान् सुविधिनाथ के ८६ गरण और ८६ गणधर तथा भगवान सुपार्श्वनाथ के ८६०० वादी बताये गये हैं। ८७ वें समवाय में आठ कर्मों में से प्रथम और अन्तिम को छोड़कर शेष छः कर्मों की ८७ उत्तर-प्रकृतियां बताई गई हैं। ८८ वें समवाय में प्रत्येक सूर्य तथा चन्द्र के साथ ८८-८८ महाग्रह बताये गये हैं। ८६ वें समवाय में तीसरे आरे के ८६ पक्ष शेष रहने पर भगवान् ऋषभदेव के मोक्ष पधारने, दशवें हरिषेण चक्रवर्ती के ८६ हजार वर्ष चक्रवर्ती पद पर रहने और भगवान् शान्तिनाथ की ८६००० साध्वियां होने का उल्लेख है। समवाय संख्या ६० में भगवान् अजितनाथ और शान्तिनाथ इन दोनों तीर्थंकरों के ९०-६० गण और उतने ही गणधर बताये गये हैं। समवाय संख्या ६१ में भगवान् कुंथुनाथ के अवधिज्ञानी साधुओं की संख्या ६१००० बताई गई है । ६२ वीं समवाय में बतलाया गया है कि स्थविर इन्द्रभूति ६२ वर्ष की पूर्ण आयु भोगकर सिद्ध हुए। ६३ वीं समवाय में भगवान् चन्द्रप्रभ के ६३ गण और ६३ गणधर तथा शान्तिनाथ के ६३०० चतुर्दश पूर्वधर होने का उल्लेख है। ६४ वीं समवाय में भगवान अजितनाथ के १४०० अवधिज्ञानी बताये गये हैं । ६५ वें समवाय में भगवान् सुपार्श्वनाथ के ६५ गण एवं ६५ गणधर होने, भगवान् कुंथुनाथ के ६५००० वर्ष और स्थविर मौर्यपुत्र के ६५ वर्ष के प्रायु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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