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________________ १२६ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [४. समवायांग और अनन्तनाथ के ५४ गणधर थे। ५५ वें समवाय में बताया गया है कि भगवान् मल्लिनाथ ५५००० वर्ष आयु पूर्ण कर सिद्ध हये। ५६ वें समवाय में विमलनाथ के ५६ गरण एवं ५६ गणधर बताने के साथ-साथ ५६ संख्या वाले अनेक तथ्यों का उल्लेख किया गया है। ५७ वें समवाय में मल्लिनाथ के ५७० , मनपर्यवज्ञानी, ५८ वें में ज्ञानावरणीय, वेदनीय, प्रायु, नाम और अन्तराय - इन पांच कर्मों की ५८ उत्तरप्रकृतियां होने का उल्लेख है। ५६ वीं समवाय में बताया गया है कि चन्द्र संवत्सर में एक ऋतु ५६ अहोरात्र की होती है। ६० वें समवाय में सूर्य का ६० मुहूर्त तक एक मंडल में रहना बताया गया है। ६१ वें समवाय में एक युग के ६१ ऋतुमास कहे गये हैं। ६२ वें समवाय में भगवान् वासुपूज्य के ६२ गण और ६२ ही गणधर बताये गये हैं। ६३ वें समवाय में भगवान ऋषभदेव के ६३ लाख पूर्व तक राज्य-सिंहासन पर रहने के पश्चात् दीक्षित होने का उल्लेख है। ६४ वें समवाय में चक्रवर्ती की ऋद्धि में अमूल्य अलभ्य मणिरत्नादि के ६४ हारों का उल्लेख है। ६५ वें समवाय में बताया गया है कि गणधर मौर्यपुत्र ६५ वर्ष तक ग्रहवास में रहने के पश्चात् दीक्षित हुए। ६६ वें समवाय में उल्लेख है कि भगवान् श्रेयांसनाथ के ६६ गरण और ६६ गणधर थे तथा मतिज्ञान की उत्कृष्ट स्थिति ६६ सागर की होती है। ६७ वें समवाय में बताया गया है कि एक यूग में नक्षत्रमास की गरगना से ६७ मास होते हैं । ६८ वें समवाय में उल्लेख है कि धातकीखण्ड द्वीप में चक्रवर्ती की ६८ विजय (प्रदेश), ६८ राजधानियां और उत्कृष्टतः ६८ ही अरिहंतादि उत्तम पुरुष होते हैं तथा भगवान विमलनाथ के ६८००० साधु थे। ६६ वें समवाय में बताया गया है कि मनुष्यलोक में मेरु को छोड़कर ६६ वर्ष और ६६ वर्षधर पर्वत हैं। ७० वें समवाय में उल्लेख है कि श्रमण भगवान महावीर ने वर्षावास के १ मास और बीस रात्रि बीतने और ७० रात्रि दिन शेष रहने पर पर्युषण किया तथा भगवान् पार्श्वनाथ ७० वर्ष संयम-पालन कर सिद्ध-मुक्त हुए। __७१ वे समवाय में यह बताया गया है कि भगवान् अजितनाथ और सगर चक्रवर्ती ७१ लाख पूर्व तक गृहवास में रहकर दीक्षित हुए। ७२ वीं समवाय में श्रमण भगवान महावीर और उनके गणधर अचल भ्राता की ७२ वर्ष की आयु बताई गई है। इसमें चक्रवर्ती के ७२००० नगर होने का तथा ७२ कलाओं का भी उल्लेख किया गया है। ७३ वें समवाय में बताया गया है कि विजय नामक बलदेव ७३ लाख पूर्व आयु पूर्ण कर सिद्ध हुए। ७४ वीं समवाय में गणधर अग्निभूति द्वारा ७४ वर्ष के प्रायुभोग के पश्चात् सिद्ध होने का उल्लेख है । ७५ वें ममवाय में भगवान सुविधिनाथ के ७५०० केवली, शीतलनाथ के ७५ लाख पूर्व और भगवान् शान्तिनाथ के ७५ हजार वर्ष गृहवास का उल्लेख है। ७६ वें समवाय में विद्युत्कुमार आदि के ७६-७६ भवन बताये गये हैं। ७७ वें समवाय में भरत चक्री के ७७ लाख पूर्व कुमारावस्था में रहने के पश्चात् महाराज पद पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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