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________________ सूर्य के प्रकाश के समान स्पष्टतः भासमान इन ऐतिहासिक तथ्यों के प्रकाश में वस्तुतः दिगम्बर परम्परा के उपरिचबित हरिषेण, रत्ननन्दी मादि द्वारा किये गये श्रुतकेवली भद्रबाहु और चन्द्रगुप्त मौर्य को समकालीन बताने वाले उल्लेख केवल काल्पनिक किंवदन्ती मात्र ही सिद्ध होते हैं। क्योंकि एक मोर तो दिगम्बर परम्परा के सभी ग्रन्य, समस्त पट्टावलियां वीर नि० सं० १६२ में श्रुतकेवली भद्रबाहु का स्वर्गवास होना मानती हैं और दूसरी और भारतीय, यूनानी एवं विश्व इतिहास से निर्विवादरूपेण यह सिद्ध है कि ईसा पूर्व ३२४ (वीर नि० सं० २०३) में अर्थात् श्रतकेवली भद्रबाहु के स्वर्गस्थ हो चुकने के ४१ वर्ष पश्चात् तक चन्द्रगुप्त साधारण सैनिक और नन्द मगध का शक्तिशाली सम्राट् था। 'तित्थोगालियपइन्ना' जैसे प्राचीन, प्रामाणिक एवं निष्पक्ष अन्य से भी इसी तथ्य की पुष्टि होती है कि वीर नि० सं० २१५ में नन्द साम्राज्य का अन्त और मौर्य साम्राज्य का अभ्युदय हुआ। ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचार्य हरिषेण और रत्ननन्दी ने जिस समय ये विवरण लिखे, उस समय ये प्रसिद्ध ऐतिहासिक तथ्य उनके ध्यान में नहीं पाये कि सम्प्रति के मगध सम्राट बनने तक केवल पाटलिपुत्र ही मगध साम्राज्य की राजधानी रही, अवन्ती वस्तुतः सम्प्रति के राज्यारोहण के पश्चात् १ वर्ष तक कुमार भूक्ति में ही रही। इस इतिहास प्रसिद्ध तथ्य की मोर ध्यान न जाने के कारण ही हरिषेण आदि ने मौर्य सम्राट् चन्द्रगुप्त के अवन्ती में रहने की बात का उल्लेख किया है। इस प्रकार के उल्लेखों के पीछे पूर्वाग्रह का पुट रहा है अथवा नहीं, इस विषय में तो साधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता पर इतना तो सुनिश्चित है कि पश्चाद्वर्ती भद्रबाह नामक प्राचार्य के जीवन से सम्बन्धित घटनाओं को नामसाम्यजनित भ्रान्तिवशात् लगभग ४४४ वर्ष पूर्व हुए श्रुतकेवली भद्रबाहु के जीवन से सम्बद्ध कर दिया गया है । ____ नाम साम्य के कारण केवल दिगम्बर परम्परा में ही इस प्रकार की भ्रान्ति उत्पन्न हुई हो ऐसी बात नहीं है। श्वेताम्बर परम्परा में भी इस प्रकार की भ्रान्तियां उत्पन्न हुई और अवान्तर काल में हुए नैमित्तिक प्राचार्य भद्रबाहु द्वारा रचित नियुक्तियों, उवसग्गहरस्तोत्र और भद्रबाहु संहिता को तथा उनके जीवन की कतिपय घटनाओं को श्रुतकेवलीभद्रबाहु के जीवन से जोड़ दिया गया है। श्रुतकेवली भद्रबाहु के प्रकरण में विस्तारपूर्वक प्रमाण प्रस्तुत कर शताब्दियों से व्याप्त इस प्रकार की भ्रान्ति का निराकरण करने का प्रयास किया गया है। श्रुतकेवलीकाल के ५ प्राचार्यों में से भद्रबाहु को छोड़ शेष चार श्रुतकेवलियों के नाम दोनों परम्परामों में भिन्न क्यों पाये जाते है, इस प्रश्न पर यहां विशेष न कह कर इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि जहां तक प्राचार्यों के नाम का प्रश्न है -- दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थों में भगवान महावीर के गणधरों के नामों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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