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________________ ८२ : जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय (५) क्या ग्रन्थकार श्वेताम्बर आगमों में उपलब्ध महावीर के गर्भापहार, विवाह, आदि तथ्यों का उल्लेख करता है? (६) क्या ग्रन्थकार ने अपने गण अन्वयादि का उल्लेख किया है और वे गण क्या यापनीयों आदि से सम्बन्धित हैं ? (७) क्या उस ग्रन्थ का सम्बन्ध उन आचार्यों से है, जो श्वेताम्बर और यापनीय के पूर्वज रहे हैं ? (८) क्या ग्रन्थ में ऐसा कोई विशिष्ट उल्लेख है, जिसके आधार पर उसे यापनीय परम्परा से सम्बन्धित माना जा सके ? (९) क्या उस ग्रन्थ में क्षुल्लक को गृहस्थ न मानकर अपवाद लिंगधारी मुनि कहा गया है ? (१०) क्या उस ग्रन्थ में रुग्ण या वृद्ध मुनि को पात्रादि में आहार लाकर देने का उल्लेख है ? । यापनीय आचार्यों द्वारा रचित आगमिक साहित्य ___ यापनीयों ने न केवल परम्परागत आगम साहित्य को स्वीकार किया, अपितु स्वयं भी जैनधर्म के विविध पक्षों पर विपुल मात्रा में साहित्य का सजन किया । आज दिगम्बर परम्परा में आगम रूप में मान्य, जो साहित्य है, उसमें अधिकांश तो यापनीय परम्परा द्वारा ही सजित है। षट्खण्डागम, कसायपाहुड, भगवती आराधना, मूलाचार जैसे महत्त्वपूर्ण शौरसेनी आगमिक ग्रन्थ यापनीय आचार्यों की ही कृतियाँ हैं। हम अग्रिम पृष्ठों पर सर्वप्रथम यापनीय आगमिक साहित्य पर विचार करेंगे। उसके बाद यापनीय कथा-साहित्य एवं अन्य लाक्षणिक ग्रन्थों की चर्चा करेंगे। कसायपाहुड सुत्त __ अचेल परम्परा और शौरसेनी आगमिक साहित्य में प्राचीनतम ग्रन्थ के रूप में कसायपाहुड और षट्खण्डागम को रखा जा सकता है । इनमें भी कसायपाहुड अपेक्षाकृत प्राचीन और पूर्ववर्ती माना जाता है । कसायपाहड के कर्ता कौन हैं ? इसका स्पष्ट उल्लेख कसायपाहुड में नहीं है। कसायपाहुड पर यतिवृषभ की चूर्णी उपलब्ध है किन्तु चूणिसूत्रों में भी उसके कर्ता का कोई उल्लेख उपलब्ध नहीं होता। कसायपाहुड के कर्ता के रूप में गुणधर का और चूर्णिकार के रूप में यतिवृषभ का उल्लेख सर्वप्रथम जयधवलाकार ने किया है। आचार्य गुणधर कौन थे और किस परम्परा के थे इसकी सूचना हमें न तो प्राचीन श्वेताम्बर आगमिक स्थविरावलियों से और न ही दिगम्बर पट्टावलियों से प्राप्त होती है। जय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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