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________________ अध्याय : २ यापनीय संघ के गण और अन्वय अभिलेखीय एवं साहित्यिक आधारों से हमें यापनीय संघ के अवान्तर गणों और अन्वयों की सूचना मिलती है । इन्द्रनंदि के नीतिसार के आधार पर प्रो० उपाध्ये लिखते हैं कि "यापनीयों में सिंह, नन्दि, सेन और देवसंघ आदि नाम से सबसे पहले संघ-व्यवस्था थी, बाद में गण, गच्छ आदि की व्यवस्था बनी ।"१ किन्तु अभिलेखीय सूचनाओं से यह ज्ञात होता है कि गण ही आगे चलकर संघ में परिवर्तित हो गए। कदम्ब नरेश रविवर्मा के हल्सी अभिलेख में 'यापनीय संघेभ्यः' ऐसा बहवचनात्मक प्रयोग है। इससे यह सिद्ध होता है कि यापनीय संघ के अन्तर्गत भी कुछ संघ या गण थे। यापनीय संघ के एक अभिलेख में "यापनीय नन्दीसंघ" ऐसा उल्लेख मिलता है। ऐसा प्रतीत होता है कि नंदि संघ यापनीय परम्परा का ही एक अंग था। कुछ अभिलेखों में यापनीयों के नन्दिगच्छ का भी उल्लेख उपलब्ध होता है। दिगम्बर परम्परा के अभिलेखों में गच्छ शब्द का प्रयोग बहुत कम मिलता है, सामान्यतया उनमें संघ, गण और अन्वय के प्रयोग पाये जाते हैं, जबकि श्वेताम्बर परम्परा के अभिलेखों में गण, गच्छ, शाखा, कुल और संभोग के प्रयोग हुए हैं। यापनीय संघ के अभिलेखों में भी केवल उपयुक्त अभिलेख में गच्छ शब्द का प्रयोग मिला है। अभिलेखों में यापनीय संघ के जिन गणों, अन्वयों का उल्लेख मिला है-उनमें पुन्नागवृक्षमूलगण, कुमिलि अथवा कुमुदिगण, मडुवगण, कण्डूरगण या काणूरगण, बन्दियूरगण, कोरेयगण का उल्लेख प्रमुख रूप से हआ है। सामान्यतया यापनोय संघ से सम्बन्धित अभिलेखों में अन्वयों का उल्लेख नहीं हुआ है, किन्तु ११वीं शताब्दी के कुछ अभिलेखों में १. अनेकान्त, वर्ष २८, किरण १. पृ० २५० । २. Epigraphia India Vol. X No. 6, see Ibid., p 247. ३. अनेकान्त, वर्ष १८, किरण १, पृष्ठ २४४-४५ । ४. अनेकान्त , वर्ष २८, किरण १, पृष्ठ २५० । Jain Education International For. Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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