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३२ : जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय चक्रवर्ती यापनीय संघ-कण्डूरगण के गुरु सकलेन्दु सैद्धान्तिक का उल्लेख है। इसी क्षेत्र के मनोलि जिला बेलगाँव के एक अभिलेख में यापनीय संघ के गुरु मुनिचन्द्रदेव के शिष्य पाल्यकीर्ति के समाधिमरण का उल्लेख है'-ये पाल्यकोर्ति सम्भवतः सुप्रसिद्ध वैयाकरण पाल्यकीर्ति शाकटायन ही हैं, जिनके द्वारा लिखित शब्दानुशासन एवं उसकी अमोघवृत्ति प्रसिद्ध है। इनके द्वारा लिखित स्त्री-निर्वाण और केवलीभुक्तिप्रकरण भी शाकटायन-व्याकरण के साथ भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित हुए हैं। इससे स्पष्ट है कि वे यापनीय परम्परा के आचार्य थे । इसी प्रकार १३वीं शती के हुकेरि जिला बेलगाँव के एक अभिलेख में कीर्ति का नामोल्लेख है। यापनीय संघ का उल्लेख करने वाला अन्तिम अभिलेख ईसवी सन् १३९४ का कगवाड जिला बेलगाँव में उपलब्ध हुआ है। यह अभिलेख तलघर में स्थित भगवान् नेमिनाथ की पीठिका पर अंकित है । इसमें यापनीय संघ और पुन्नागवृक्षमूलगण के नेमिचन्द्र, धर्मकीर्ति और नागचन्द्र का उल्लेख है।
१. Jainism in South India, P. B. Desai, p. 404. २. जैन शिलालेखसंग्रह, भाग ४, क्रमांक ३८४ । ३. जिनविजय (कन्नड़) बेलगाँव, जुलाई १९३१ ।
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