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________________ विषय-प्रवेश ; ३१ इसी प्रकार बल्लाल देव और गणधरादित्य के समय में ईसवी सन् ११०८ में मलसंघ पुन्नागवृक्षमूलगण की आर्यिका रात्रिमती कन्ति की शिष्या बम्मगवुड़ द्वारा मन्दिर बनवाने का उल्लेख है । यहाँ मूलसंघ का उल्लेख कुछ भ्रान्ति उत्पन्न करता है, यद्यपि पुन्नागवृक्षमूलगण के उल्लेख से यह स्पष्ट हो जाता है कि वह आर्यिका यापनीय संघ से ही सम्बन्धित थी। क्योंकि पुन्नागवृक्षम्लगण यापनीय संघ का ही एक गण था । - बइलमोंगल जिला बेलगाँव से चालुक्यवंशी त्रिभुवन मल्लदेव के काल का एक अभिलेख प्राप्त है इसमें यापनीय संघ मइलायान्वय कोरेयगण के मूल भट्टारक और जिनदेवसूरि का विशेष रूप से उल्लेख है। इसी प्रकार विक्रमादित्य 'षष्ठ' के शासन काल का हलि जिला बेलगाँव का एक अभिलेख है जिसमें यापनीय संघ के कण्डूरगण के बाहुबली, शुभचन्द्र, मोनिदेव, माघनंदि आदि आचार्यों का उल्लेख है। एकसम्बि जिला बेलगाँव से प्राप्त एक अभिलेख में विजयादित्य के सेनापति कालण द्वारा निर्मित नेमिनाथ वसति के लिए यापनीय संघ पुन्नागवृक्षमूलगण के महामण्डलाचार्य विजयकीर्ति को भूमिदान दिये जाने का उल्लेख है । इस अभिलेख में इन विजयकीर्ति की गुरुपरम्परा के रूप में मुनिचन्द्र, विजयकीर्ति 'प्रथम', कुमारकीति और विद्य विजयकीति का भी उल्लेख है। असिकेरे, मैसूर के एक अभिलेख में यापनीयसंघ के मडुवगण की भूरि-भूरि प्रशंसा की गई है। इस मन्दिर की मूर्ति प्रतिष्ठा पुन्नागवृक्षमूलगण और यापनीय संघ के शिष्य भाणकसेली द्वारा कराई गई थी। प्रतिष्ठाचार्य यापनीय संघ के मडुवगण के कुमारकोति सिद्धान्त देव थे। इस अभिलेख में यापनीय शब्द को मिटाकर काष्ठामुख शब्द को जोड़ने की घटना की सूचना भी सम्पादक से मिलती है। इनके अतिरिक्त १२वीं शताब्दी में लोकापुर जिला बेलगांव के एक अभिलेख" में उभयसिद्धान्त १. जैनशिलालेखसंग्रह, भाग २, लेखक्रमांक २५० । २. Annual Report of South Indian Inscriptions. 1951-52. No. 33, p. 12 See also. अनेकान्त, वर्ष २८, किरण १, पृ० २४८ । ३. जैनशिलालेखसंग्रह, भाग ४, लेखक्रमांक २०७ । ४. वही, भाग ४, लेखक्रमांक २५९। . ५. Journal of the Karnatak University, X, 1965, 159, ff. ६. जैनशिलालेखसंग्रह, भाग ५, लेखक्रमांक ११७ । . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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