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________________ '३० : जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय प्रकार ई० सन् १०४५ के मुगद (मैसूर) लेख में भी यापनीय संघ के कुमुदिगण के कुछ आचार्यों के उल्लेख मिलते हैं-श्री कीर्तिगोरवडि, प्रभाशशांक, नयवृत्तिनाथ, एकवीर, महावीर, नरेन्द्रकीर्ति नागविक्कि, वृत्तीन्द्र, निरवद्यकीर्ति, भट्टारक माधवेन्दु, बालचन्द्र, रामचन्द्र, मुनिचन्द्र, रविकीर्ति, कुमारकीर्ति, दामनंदि, विद्यगोवर्धन, दामनन्दि, वड्ढाचार्य आदि ।' यद्यपि प्रोफेसर उपाध्ये ने इन नामों में से कुछ के सम्बन्ध में कृत्रिमता की सम्भावना व्यक्त की है, किन्तु उनका आधार क्या है ? यह उन्होंने अपने लेख में स्पष्ट नहीं किया है। इसी प्रकार मोरब जिला धारवाड के एक लेख में यापनीय संघ के जय-कोतिदेव के शिष्य नागचन्द्र के समाधिमरण का उल्लेख है। इसमें -नागचन्द्र के शिष्य कनकशक्ति को मन्त्रचूडामणि बताया गया है । सन् १०९६ में त्रिभुवनमल्ल के शासनकाल में यापनीय संघ के पुन्नागवृक्षमलगण के मुनिचन्द्र विद्य भट्टारक के शिष्य चारुकीति पंडित को सोविसेट्टि द्वारा एक उपवन में दान दिये जाने का उल्लेख है। इस दानपत्र में यह भी उल्लेख है कि इसे मुनिचन्द्र सिद्धान्तदेव के शिष्य दायियय्य ने लिपिबद्ध किया था। धर्मपूरी जिला बीड, महाराष्ट्र के एक लेख में यापनीय संघ और वन्दियूर गण के महावीर पंडित को कुछ नगरों से विविधकरों द्वारा प्राप्त आय का कुछ भाग भगवान् की पूजा और साधुओं के भरण-पोषण हेतु दान दिये जाने का उल्लेख है। इसी प्रकार ११वीं शताब्दी के एक अन्य अभिलेख में यापनीय संघ की माइलायान्वय एवं कोरेयगण के देवकीति को गन्धवंशो शिवकुमार द्वारा जैन मन्दिर निर्मित करवाने और उसकी व्यवस्था हेतु चुमुदवाड नामक ग्राम दान में देने का उल्लेख है ।" इस अभिलेख में देवकीर्ति के पूर्वज गुरुओं में शुभकीति, जिनचन्द्र, नागचन्द्र, गुणकीर्ति आदि आचार्यों का भी उल्लेख है। १. (अ) अनेकान्त, वर्ष २८; किरण १, पृ० २४८ । (ब) South Indian Inscriptions XII. No. 78, Madras 1940. (स) जैनशिलालेखसंग्रह, भाग ४, लेखक्रमांक १३१ । २. जैनशिलालेखसंग्रह, भाग ४, लेखक्रमांक १४३ । ३. वही १६८ । ४. जैनशिलालेखसंग्रह, भाग ५, लेखक्रमांक ६९-७० । 4. I. A. XVIII. p. 309. Also see Jainism in South India P. B. Desai, p. 115. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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