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________________ विषय-प्रवेश : २९ यापनीय संघ से हो सम्बन्धित ई० सन् ९८० का चालुक्यवंश का भी एक अभिलेख मिलता है। इस अभिलेख में शान्तिवर्म द्वारा निर्मित जैन मन्दिर के लिए भूमिदान का उल्लेख है, इसमें यापनीय संघ के काण्डूरगण के कुछ साधुओं के नाम दिये गये हैं यथा-बाहबलिदेवचन्द्र, रविचन्द्रस्वामो, अर्हन्नन्दी, शुभचन्द्र, सिद्धान्तदेव, मौनिदेव और प्रभाचन्द्रदेव आदि । इसमें प्रभाचन्द्र को शब्दविद्यागमकमल, षटतर्काकलङ्क कहा गया है। ये प्रभावन्द्र-'प्रमेयकमलमार्तण्ड' और 'न्यायकुमुदचन्द्र' के कर्ता प्रभाचन्द्र से भिन्न यापनीय आचार्य शाकटायन के 'शब्दानुशासन' पर 'न्यास' के कर्ता हैं। प्रो० पी० बी० देसाई ने अपने ग्रन्थ में सौदत्ति (बेलगाँव) के एक अन्य अभिलेख की चर्चा की है जिसमें यापनीय संघ के काण्डूरगण के शुभचन्द्रप्रथम, चन्द्रकोति, शुभचन्द्र 'द्वितीय', नेमिचन्द्र 'प्रथम', कुमारकीर्ति, प्रभाचन्द्र और नेमिचन्द्र द्वितीय के उल्लेख हैं ।२ यापनीय संघ से सम्बन्धित ई० सन् १०१३ का एक अन्य अभिलेख 'बेलगाँव' की टोड्डावसदी की नेमिनाथ की प्रतिमा के पादपोठ पर अंकित है, जिसे यापनीय संघ के पारिसय्य ने ई० सन् १०१३ में निर्मित करवाया था। इसी प्रकार सन् १०२० ई० के 'रढवग' लेख में यापनीय संघ के 'पुन्नागवक्षमलगण के प्रसिद्ध उपदेशक आचार्य कुमारकीति पण्डितदेव को 'हुविनवागे' की भूमि के दान का उल्लेख है । ई० सन् १०२८-२९ के हासुर के अभि-- लेख में यापनीय संघ के गुरु जयकोति को सुपारी के बाग और कुछ घर मन्दिर के लिए दान में देने के उल्लेख हैं।' 'हुली' के दो अभिलेख जो ई० सन् १०४४ के हैं, उनमें यापनीय संघ के पुन्नागवृक्षमूलगण के बालचन्द्रदेव भट्टारक' का तथा दूसरे में रामचन्द्रदेव का उल्लेख है। इसी १. जैन शिला लेख संग्रह, भाग २, लेख क्रमांक १६० । २. Jainism in South India and Some Jaina Epigrphs P. B. ___Desai p. 165. ३. देखें-अनेकान्त, वर्ष २८, किरण १, पृ० २४७ । ४. (अ) Journal of the Bombay Historical Society, III, pp. 100. (ब) अनेकान्त, वर्ष २८ किरण १, पृ० २४८ । ५. (अ) वही पृ० २४८ ।। (ब) South Indian Inscriptions XIJ No. 65, Madras 1940. ६. जैनशिलालेखसंग्रह, भाग ४, लेख क्रमांक १३०। ७. वही । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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