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________________ ३४ : जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय कोरेयगण के साथ मइलापान्वय अथवा मैलापान्वय के उल्लेख मिलते हैं। यापनीय संघ के प्रारम्भिक अभिलेखों में उसके किसी गण या अन्वय का उल्लेख नहीं मिलता। यापनीयों में संघ, गण अथवा अन्वय सम्बन्धी उल्लेख हमें नवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध अर्थात् सन् ८१२ ई० से मिलने लगते हैं उसके पूर्व के अभिलेखों में मात्र 'यापनीयसंघेभ्यः' ऐसा बहुवचनात्मक उल्लेख प्राप्त हआ है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि प्रारम्भ में यापनीयों में संघ व्यवस्था थी, गण, अन्वय आदि की व्यवस्था नहीं थी । ये संघ ऐसे समूह थे, जिसमें मुनियों के नामान्त विशिष्ट प्रकार के होते थे, जैसे नन्दिसंघ के मुनियों के नाम के अन्त में नन्दि शब्द प्रयुक्त होता था । सेनसंघ में मुनियों के नाम के अन्त में सेन शब्द प्रयुक्त होता था। इसी प्रकार सिंह संघ और देव संघ में भी नामान्तक शब्दों की स्थिति थी। पुन्नागवृक्षमूलगण गण व्यवस्था की दृष्टि से यापनीय संघ के अभिलेखों में सर्व प्रथम यापनीय नन्दिसंघ पुन्नागवृक्षमूलगण ऐसा उल्लेख मिलता है । यद्यपि इसके पूर्व भी सन् ४८८ ई० के एक अभिलेख में कनकोपलसम्भूतवृक्षमुलगण का उल्लेख है किन्तु इस गण के साथ यापनीय संघ का स्पष्ट उल्लेख नहीं है। इसके सम्बन्ध में डॉ. गुलाबचन्द्र चौधरी लिखते हैं कि लेख क्रमांक १०६ में उल्लिखित 'मूलगण' को श्री प्रेमीजी मूलसंघ समझ बैठे, किन्तु यह एक भ्रान्त धारणा ही है ।' डा० चौधरी के अनुसार यह गण यापनीय संघ का ही एक गण था। अन्य अभिलेखों से यह भी ज्ञात होता है कि नन्दीसंघ आठवीं-नवीं शताब्दी तक यापनीय सम्प्रदाय के अन्तर्गत ही था, अतः नन्दीसंघ से सम्बन्धित उस काल के गणों को यापनीय संघ से ही सम्बद्ध समझना चाहिए । यह यापनोय नन्दीसंघ कई गणों में विभक्त था । इनमें कनकोपलसम्भूतवृक्षमूलगण, श्रीमूलमूलगण तथा पुन्नागवृक्षमूलगण प्रमुख थे। मेरी दृष्टि में यापनीय प्रारम्भ में अपने गण को १. जैनशिलालेखसंग्रह, भाग २, लेख क्रमांक १३, १८२ । २. जैनशिलालेखसंग्रह, भाग २, ले० ० १२४ । ३. वही, भाग २, ले० क्र० १०६ । ४. वही, भाग ३, भूमिका पृ० २७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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