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जैनधर्म में अचेलकत्व और सचेलकत्व का प्रश्न : ४६७ (क) राज-परिवार आदि अतिकुलीन घराने के व्यक्ति जनसाधारण के समक्ष नग्नता छिपाने के लिए वस्त्र रख सकते हैं।
(ख) इसी प्रकार वे व्यक्ति भी जो अधिक लज्जाशील हैं अपनी नग्नता को छिपाने के लिए वस्त्र रख सकते हैं।
(ग) वे नवयुवक मुनि जो अभी अपनी काम-वासना को पूर्णतः विजित नहीं कर पाये हैं और जिन्हें लिंगोत्तेजन आदि के कारण निग्रन्थ संघ में और जनसाधारण में प्रवाद का पात्र बनना पड़े, अपवाद रूप में वस्त्र रख सकते हैं।
(घ) वे व्यक्ति जिनके लिंग और अण्डकोष विद्रूप हैं, वे संलेखना के अवसर को छोड़कर यावज्जीवन वस्त्र धारण करके ही रहें।
(ङ) वे व्यक्ति जो शीतादि परीषह सहन करने में सर्वथा असमर्थ हैं,. अपवाद रूप में वस्त्र रख सकते हैं। ___ (च) वे मुनि जो अर्श, भगन्दर आदि की व्याधि से ग्रस्त हों, बीमारी की स्थिति में वस्त्र रख सकते हैं।
४. जहाँ तक साध्वियों का प्रश्न था यापनीय संघ में स्पष्ट रूप से उन्हें वस्त्र रखने की अनुज्ञा थो । यद्यपि साध्वियाँ भी एकान्त में संलेखना के समय जिन-मद्रा अर्थात् अचेलता धारण कर सकती थीं। ___इस प्रकार यापनीयों का आदर्श अचेलकत्व ही रहा, किन्तु अपवाद मार्ग में उन्होंने वस्त्र-पात्र की ग्राह्यता भी स्वीकार की। वे यह मानते हैं कि कषाय-त्याग और रागात्मकता को समाप्त करने के लिए सम्पूर्ण परिग्रह का त्याग, जिसमें वस्त्रत्याग भी समाहित है, आवश्यक है, किन्तु वे दिगम्बर परम्परा के समान एकान्त रूप से यह घोषणा नहीं करते हैं कि वस्त्रधारी चाहे वह तीर्थकर ही क्यों न हो, मुक्त नहीं हो सकता। वे सवस्त्र में भी आध्यात्मिक विशुद्धि और मुक्ति की भजनीयता अर्थात् सम्भावना को स्वीकार करते हैं। इस प्रकार अचेलकत्व सम्बन्धी मान्यता के सन्दर्भ में दिगम्बर परम्परा के निकट खड़े होकर भी अपना भिन्न मत रखते हैं। वे अचेलकत्व के आदर्श को स्वीकार करके भी सवस्त्र मुक्ति की सम्भावना को स्वीकार करते हैं। पुनः मुनि के लिए अचेलकत्व का पुरजोर समर्थन करके भी वे यह नहीं कहते हैं कि जो आपवादिक स्थिति में वस्त्र धारण कर रहा है, वह मुनि नहीं है । जहाँ हमारी वर्तमान दिगम्बर परम्परा मात्र लंगोटीधारी ऐलक, एक-चेलक या दो वस्त्रधारी क्षुल्लक को मुनि न मानकर उत्कृष्ट श्रावक ही मानती
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