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________________ यापनीय संघ की विशिष्ट मान्यताएं : ३९१ अर्थात् अन्य धर्म परम्परा के वेश से भी मुक्ति सम्भव है।' उनके ये विचार श्वेताम्बर परम्परा के अनुकूल है। श्वेताम्बर साहित्य में यापनीय मान्यताओं पर अन्य कोई विस्तृत विवरण उपलब्ध नहीं होता है । मात्र कुछ ग्रन्थों में स्त्री-मुक्ति और केवलोभुक्ति के सन्दर्भ में शाकटायन के स्त्रीमुक्ति प्रकरण एवं केवलीभुक्ति प्रकरण की कुछ कारिकायें उद्धृत की हई मिलती है। दिगम्बर साहित्य में उल्लेखित यापनियों को मान्यताएँ यद्यपि दक्षिण भारत के जैन अभिलेखों में ईस्वी सन् की ५वीं शतों के उत्तरार्ध से यापनीयों के उल्लेख मिलते हैं, किन्तु दिगम्बर साहित्य में दसवीं शताब्दी में पूर्व यापनीयों का स्पष्ट उल्लेख कहीं नहीं मिलता है। इस सम्बन्ध में पूर्ववर्ती दिगम्बर साहित्य-विशेष रूप से तत्त्वार्थ की टीकाओं का और अन्य दार्शनिक ग्रन्थ का अध्ययन किया जाना चाहिए। यह सहसा विश्वास नहीं होता कि इन पाँच शताब्दियों में दिगम्बर परम्परा में यापनीयों पर कुछ भी नहीं लिखा गया होगा। मेरी जानकारी में दिगम्बर साहित्य में सर्वप्रथम यापनीयों का उल्लेख बृहत्कथाकोश' एवं दर्शनसार ( दोनों हो विक्रम की १०वीं शती का अन्तिम चरण ) में मिलता है। उसमें मात्र यही विवरण है कि यापनोयों की उत्पत्ति श्री कलश नामक श्वेताम्बर साधु से हुई है। प्रतोत होता है कि इन ग्रन्थों के कर्ताओं ने अनुश्रति के आधार पर लगभग सात सौ बर्ष पूर्व की घटना का प्रस्तुतीकरण किया है, क्योंकि इसको पूष्टि किसी अन्य स्रोत से नहीं होतो है। इन ग्रन्थों में यापनीय मान्यताओं का कोई स्पष्ट संकेत नहीं है, मात्र श्वेताम्बरों के साथ-साथ यापनीय, काष्ठा, द्राविड़ और माथुर (निष्पिच्छिक ) संघ को जैनाभास बताया गया है। इसमें यह भी स्पष्ट नहीं किया गया है कि यापनीय क्यों जैनाभास हैं ? और उनको क्या मान्यताएं हैं ? दिगम्बर परम्परा में रत्ननन्दी के भद्रबाहुचरित में भी यापनोयों के १. षड्दर्शन-समुच्चय-हरिभद्रसूरि, कारिका ४४ । -गुणरत्नटीका ( भारतीय ज्ञानपीठ) पृ० १६१ २. बृहत्कथाकोश ( भारतीय विद्याभवन, बम्बई, १९४३ ) कथाक्रमांक १३१, पृ० ३१९ ३. दर्शनसार ( देवसेन ), गाथा २९ उद्धृत जैनसाहित्य का इतिहास पूर्व पीठिका, पृ० ३७२ ४. अनेकान्त, वर्ष २८, किरण १, पृ० १३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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