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३८० : जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय
हुए थें, वह भी उसी के समीप स्थित ॐ चेहरा ( उच्चकल्प नगर ) से उत्पन्न हुई थी । तत्त्वार्थभाष्य की प्रशस्ति में उमास्वाति की माता को वात्सी कहा गया है । हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि वर्तमान नागोद और ॐ चेहरा दोनों ही प्राचीन वस्स देश के अधीन ही थे । भरहुत और इस क्षेत्र के आस-पास जो कला का विकास देखा जाता है, वह कौशाम्बो अर्थात् वत्सदेश के राजाओं के द्वारा ही किया गया था । ॐ चेहरा वत्सदेश के दक्षिण का एक प्रसिद्ध नगर था । भरहुत के स्तूप के निर्माण में भी वात्सी गोत्र के लोगों का महत्त्वपूर्ण योगदान था, ऐसा वहाँ से प्राप्त अभिलेखों से प्रमाणित होता है । भरहुत के स्तूप के पूर्वी तोरणद्वार पर वाच्छोपुत्त धनभूति का उल्लेख है । अतः हम इसी निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि उमास्वाति का जन्मस्थल नागोद मध्य प्रदेश ( न्यग्रोध ) और उनकी उच्चनगर शाखा का उत्पत्ति स्थल ॐ चेहरा ( म०प्र० ) ही है । तथा उन्होंने वर्तमान पटना ( कुसुमपुर ) में अपना तत्त्वार्थ भाष्य लिखा था अतः वे उत्तर भारत के निग्रंथ संघ में हुए हैं ।
उपसंहार
तत्त्वार्थसूत्र के संन्दर्भ में उपर्युक्त विस्तृत विवेचन के पश्चात् मैं जिन निष्कर्षो पर पहुँचा हूँ, वे निम्न हैं
१. जहाँ तक ग्रन्थ के नाम का प्रश्न है चाहे हम उसे तत्त्वार्थसूत्र माने या तत्त्वार्थाधिगमसूत्र माने, इससे उसकी परम्परा के निर्धारण में कोई सहायता नहीं मिलती है । यदि पं० फूलचन्दजी शास्त्री के अनुसार एक -बार यह भी मान लिया जाय कि तत्त्वार्थाधिगमसूत्र यह नाम भाष्य का है मूलसूत्र का नहीं, तो भी इससे उसके स्वरूप और परम्परा में कोई अन्तर नहीं आता है । वैसे तो तत्त्वार्थसूत्र के दोनों परम्परा में ये दोनों और दूसरे अनेक नाम प्रचलित रहे हैं । अतः ग्रन्थ नाम का विवाद सार्थक नहीं हैं ।
२. जहाँ तक तत्त्वार्थ के कर्ता के नाम का प्रश्न है वह उमास्वाति हो है । गृध्रपिच्छ या वाचक उमास्वाति के विशेषण हो सकते हैं, किन्तु उनके नाम नहीं । उनके नाम के साथ गृध्रपिच्छ विशेषण होने से हो न तो वे दिगम्बर या यापनीय सिद्ध होते हैं और न वाचक विशेषण होने से श्वेताम्बर सिद्ध होते हैं । फिर भी विद्वानों ने ऐसी अवधारणा बनाई है । मेरी दृष्टि में ये दोनों ही विशेषण उत्तर भारत की अविभक्त उस निर्ग्रन्थधारा
१. भरहुत, भूमिका पृ० सं० १८
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