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________________ तत्त्वार्थसूत्र और उसकी परंपरा : ३७९ की दूरी पर अवस्थित हैं और किसी जैन साधु के द्वारा यहाँ से एक माह की पदयात्रा कर दोनों स्थलों पर आसानी से पहुंचा जा सकता था। स्वयं उमास्वाति ने हो लिखा है कि वे विहार ( पदयात्रा ) करते हुए कुसुमपुर ( पटना ) पहुँचे थे ( विहरतापुरवरेकुसुमनाम्नि )।' इससे यही लगता है कि न्यग्रोध, ( नागोद ) कुसुमपुर (पटना) के बहुत समोप नहीं था। डॉ. होरालाल जैन ने संघ विभाजन स्थल रहवीरपुर की पहचान दक्षिण में महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के राहुरी ग्राम से और उमास्वाति के जन्मस्थल को पहचान उसी के समोप स्थित 'निधोज' से की, किन्तु यह ठीक नहीं है। प्रथम तो व्याकरण की दृष्टि से न्यग्रोध का प्राकृत रूप नागोद होता है, निधोज नहीं । दूसरे उमास्वाति जिस उच्चै गर शाखा के थे, वह शाखा उत्तर भारत की थी, अतः उनका सम्बन्ध उत्तर भारत से हो है। अतः उनका जन्म स्थल भी उत्तर भारत में ही होगा। उच्चानगरी शाखा के उत्पत्ति स्थल ऊँचेहरा से लगभग ३० कि० मी. पश्चिम की ओर 'नागोद' नाम का कस्बा आज भी है। आजादी के पूर्व यह एक स्वतन्त्र राज्य था और ऊँचेहरा इसी राज्य के अधीन आता था। नागोद के आस-पास भी जो प्राचीन सामग्री मिली है उससे यही सिद्ध होता है कि यह भी एक प्राचीन नगर था। प्रो० के० डी० बाजपेयी ने नागोद से २४ कि० मो० दूर नचना के पुरातात्त्विक महत्त्व पर विस्तार से प्रकाश डाला है। नागोद को अवस्थिति पन्ना ( म०प्र०), नचना और ऊँचेहरा के मध्य है। इस क्षेत्रों में शंगकाल से लेकर ९वीं-१०वीं शतो तक को पुरातात्विक सामग्री मिलती है, अतः इसकी प्राचीनता में सन्देह नहीं किया जा सकता । नागोद न्यग्रोध का ही प्राकृत रूप है, अतः सम्भावना यही है कि उमास्वाति का जन्म स्थल यही नागोद था और जिस उच्च नागरी शाखा में वे दीक्षित १. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, स्वोपज्ञ भाष्य, अन्तिम प्रशस्ति, श्लोक सं० ३ २. दिगम्बर जैन सिद्धान्त दर्शन, प्रका० दिगम्बर जैन पंचायत बम्बई, दिगम्बर १९४४ में मुद्रित 'जैन इतिहास का एक विलुप्त अध्याय' नामक प्रो० हीरालाल जैन का लेख, पृ० ७ ३. संस्कृति संन्धान ( सम्पा० डॉ० झिनकू यादव ) प्रका० राष्ट्रीय मानव संस्कृति शोध संस्थान, वाराणसी वाल्यूम III, १९९० में मुद्रित 'बुन्देलखण्ड की सांस्कृतिक धरोहर, नचना नामक प्रो० कृष्णदत्त बाजपेयी का लेख, पृ० ३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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