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तत्वार्थसूत्र और उसकी परम्परा : ३४५ दूसरे का गला काट सकता है, वह अपना भी गला काट सकता है । अतः ऐसे तर्कों के सम्बन्धों में हमें बहुत सावधान रहने को आवश्यकता है।
- डा० कोठिया ने तत्त्वार्थसूत्र को दिगम्बर परम्परा का सिद्ध करने के 'लिए जो तक उपस्थित किये हैं, वे हो तर्क पं० कैलाशचन्दजी ने जैन साहित्य का इतिहास भाग-२ (पृ० २२८ से २७२ ) में भी विस्तार से प्रस्तुत किये हैं। पं० जुगलकिशोर जी आदि दिगम्बर परम्परा के अनेक अन्य विद्वानों ने भी उन्हीं मुद्दों को छआ है। हम उन सब की चर्चा पुनः यहाँ नहीं करेंगे। उन्होंने जो नये मुद्दे उठाये हैं उनमें एक परिषहों की चर्चा में नाग्न्य शब्द का प्रयोग है। जिसका संकेत पं० फूलचन्दजी सिद्धान्त शास्त्री ने सर्वार्थसिद्धि को भूमिका में भी किया है । तत्वार्थसूत्र में परोषहों में अचेल के स्थान पर नाग्न्य शब्द के प्रयोग को देखकर डॉ० कोठिया ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि जब श्वेताम्बर परम्परा ने अचेल शब्द का अर्थ अल्पचेल के रूप में भ्रष्ट कर दिया, तो उस परम्परा से अपने को पृथक करने के लिए सूत्रकार ने अचेल के स्थान पर 'नाग्न्य' शब्द प्रयोग किया। सर्वप्रथम तो हम पण्डित जी से यह जानना चाहेंगे कि श्वेताम्बर परम्परा में अचेल शब्द का अल्पचेल अर्थ कब प्रचलित हआ ? तत्त्वार्थसूत्र की रचना के पहले या बाद में ? श्वेताम्बर परम्परा के मान्य आगमों में तो अचेल का अर्थ अल्पचेल होता है, ऐसा कहों लिखा नहीं है, नियुक्तियाँ भी इस सम्बन्ध में कोई उल्लेख नहीं करती हैं। इस सम्बन्ध में सर्वप्रथम उल्लेख णियों एवं टीकाओं में मिलता है और जैसा कि दोनों परम्परा के विद्वान मानते हैं, चणियाँ एवं टोकाएँ तो ७ वीं शती या उसके भी बाद रची गयी हैं, फिर तीसरी या चौथी शती में हुए उमास्वाति को यह कैसे ज्ञात हो गया कि अचेल का अर्थ श्वेताम्बर आचार्य अल्पचेल करते हैं । क्या वे सर्वज्ञ थे ? या वे श्वेताम्बर परम्परा के उद्भव के बाद हुए हैं ? सम्भवतः डॉ० कोठिया यह मान बैठे हैं कि 'नाग्न्य' शब्द का प्रयोग मात्र दिगम्बर आचार्यों ने अपनी परम्परा को पृथक सूचित करने के लिए किया है। लगता है कि आदरणीय डॉ० सा० ने उन आगमों को देखा ही नहीं है । आगमों में नग्न के प्राकृत रूप नग्ग या णगिन के अनेक प्रयोग देखें जा सकते हैं। (देखिए-उत्तरा० २०/४१; भगवती १/९/७७; सूत्रकृतांग ७/१४; आचा० १/९/६ ) डॉ० कोठियाजो ने आगमों में अचेल शब्द को देखा, किन्तु नग्न की ओर ध्यान नहीं दिया। आगमों में अचेल और नग्न दोनों ही शब्द प्रयुक्त हुए हैं। ई० सन् की दूसरी शती तक श्वेताम्बरों
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