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________________ १६ : जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय 'प्रेमी' के अनुसार ऐसा कोई सम्प्रदाय ही नहीं था । यह मात्र संघभेद के पूर्व की स्थिति है ।" सत्य तो यह है कि यापनीयों या बोटिकों ने आर्यकृष्ण के उसी वस्त्र का विरोध कर अचेलक परम्परा के पुनः स्थापन का प्रयत्न किया था। देश-काल के प्रवाह में जैन संघ में जो परिवर्तन आ रहे थे, उसी का विरोध यापनीयों या बोटिकों की उत्पत्ति का कारण बना । इस प्रकार अभिलेखीय ओर साहित्यिक दोनों ही प्रमाणों से यह निष्कर्ष निकलता है कि ईसा को लगभग दूसरी शताब्दी तक चाहे महावीर के धर्मसंघ में विभिन्न गण, शाखा, कुल और सम्भोग अस्तित्व में आ गये थे, फिर भी श्वेताम्बर या यापनीय जैसे वर्गों में उसका स्पष्ट: विभाजन नहीं हो पाया था । अतः यह स्पष्ट है कि जैन धर्मं में श्वेताम्बर, दिगम्बर एवं यापनीय सम्प्रदाय ईसा की तीसरी शती या उसके पश्चात् ही अस्तित्व में आये हैं । यद्यपि इस संघभेद के मूल कारण इसके पूर्व भो भीतर-भीतर अपनी जड़ें जमा चुके थे । जैसा कि हम पूर्व में देख चुके हैं कि श्वेताम्बर परम्परा में मतभेद और संघभेद सम्बन्धो जो सूचनायें उपलब्ध हैं, उनमें प्रथमतः स्थानाङ्ग एवं आवश्यक नियुक्ति में बोटिक या बोडिय का कहीं भी उल्लेख नहीं है । बोडिय' ( बाटिक ) का सर्वप्रथम उल्लेख आवश्यकमूलभाष्य में है । इस ग्रन्थ के अनुसार वोर निर्वाण के ५०९ वर्ष में रथवीरपुर नगर के दीपक उद्यान में अज्ज कण्ह (आर्यकृष्ण) के शिष्य शिवभूति द्वारा बोटिक परम्परा की उत्पत्ति हुई । " आवश्यकमूलभाष्य, आवश्यकनियुक्ति एवं विशेषावश्यकभाष्य के मध्य काल की रचना है । उपलब्ध आवश्यक नियुक्ति वार निर्वाण के ५८४ वर्ष पश्चात् अर्थात् ईसा की प्रथम शतो की घटनाओं का उल्लेख करती है, अतः उसके पश्चात् ही उसका रचनाकाल माना जा सकता है । विशेषावश्यकभाष्य का रचनाकाल सामान्यतया ईसा की छठीं शताब्दी का अन्तिम चरण (शक ५३१ के पूर्व ) माना जाता है । अतः इस अवधि के बीच ही बोटिक मत या १. ( अ ) वही, पृ० ३८१ । (ब) जैनहितैषी, भाग १३, अंक ९-१० । २. आवश्यक मूलभाष्य १४५-१४८ । उद्धृत — आवश्यक नियुक्ति हरिभद्र-वृत्ति, पृ० २१५-२१६ । ३. आवश्यकनियुक्ति ७७९-७८३ । ४. जैन साहित्य का इतिहास - पूर्वपीठिका, पृ० ३७२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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