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________________ २८८ : जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय "तद्यथा, इन्द्राः सामानिकाः त्रायस्त्रिशाः पारिषद्याः आत्मरक्षाः लोकपालाः अनीकाधिपतयः अनीकानि प्रकीर्णकाः आभियोग्याः किल्विषिकाश्चेति ।" ___इस भाष्य में 'अनीकाधिपतयः' नाम का जो नया भेद दिया है वह सूत्रसंगत नहीं है । इसी से सिद्धसेनगणी भी लिखते हैं कि___ "सूत्रे चानीकान्येवोपात्तानि सूरिणा नानीकाधिपतयः, भाष्ये पुनरुपन्यस्ताः ।" अर्थात्-सूत्र में तो आचार्य ने अनीकों का ही ग्रहण किया है अनीकाधिपतियों का नहीं। भाष्य में उसका पुनः उपन्यास किया गया है। वे मानते हैं कि इससे सूत्र और भाष्य में जो विरोध आता है, उससे इनकार नहीं किया जा सकता । सिद्धसेनगणी ने इस विरोध का कुछ परिमार्जन करने के लिये जो यह कल्पना की है कि भाष्यकार ने अनीकों और अनीकाधिपतियों के एकत्व का विचार करके ऐसा भाष्य कर दिया जान पड़ता है, वह ठोक मालम नहीं होती; क्योंकि अनीकों और अनीकाधिपतियों की एकता का वैसा विचार यदि भाष्यकार के ध्यान में होता तो वह अनीकों और अनीकाधिपतियों के लिये अलग-अलग पदों का प्रयोग करके संख्याभेद को उत्पन्न न करता। भाष्य में तो दोनों का स्वरूप भी अलगअलग दिया गया है जो दोनों की भिन्नता का द्योतन करता है । यों तो देव और देवाधिपति (इन्द्र) यदि एक हों तो फिर 'इन्द्र' का अलग भेद करना भी व्यर्थ ठहरता है। परन्तु दश भेदों में इन्द्र की अलग गणना की गई है, इससे उक्त कल्पना ठीक मालूम नहीं होती। सिद्धसेनगणि भी अपनी इस कल्पना पर दृढ़ मालूम नहीं होते, इसी से उन्होंने आगे चलकर लिख दिया है-"अन्यथा वा दशसंख्या भिवेत'-अथवा यदि ऐसा नहीं है तो दश की संख्या का विरोध आता है"। ___ यहाँ आदरणीय मुख्तार जी अनीक (सैनिक) और अनोकाधिपति में भेद दिखाकर यह सिद्ध करना चाहते हैं कि जहाँ मूलसूत्र में देव परिषद् के दस प्रकार दिखाये हैं, वहाँ भाष्य में अनीक (सैनिक) और अनीकाधिपति को अलग-अलग मानने पर ग्यारह भेद हो जाते हैं। मुख्तार जी का एक तर्क यह भी है कि जिस प्रकार इन्द्र (देव-अधिपति) और देवों में १. "तदेकत्वमेवानोकानीकाधिपत्योः परिचिन्त्य विवृतमेव भाष्यकारेण ।" २. जैनसाहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश, पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार, पृ० १२८-२९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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