________________
सिद्धसेन दिवाकर और उनके सन्मतिसूत्र की परम्परा :
सिद्धसेन दिवाकर और उनके ग्रन्थ सन्मतिसूत्र के सम्प्रदाय के विषय में विभिन्न दृष्टिकोण परिलक्षित होते हैं । जिनभद्र, हरिभद्र आदि से 'प्रारम्भ करके पं० सुखलाल जी, पं० बेचरदास जी आदि सभी श्वेताम्बर परम्परा के विद्वान् एकमत से उन्हें अपने सम्प्रदाय का स्वीकार करते है । इसके विपरीत षट्खण्डागम की धवला टीका एवं जिनसेन के हरिवंश तथा रविषेण के पद्मपुराण में सिद्धसेन का उल्लेख होने से पं० जुगल किशोर मुख्तार जैसे दिगम्बर परम्परा के कुछ विद्वान् उन्हें अपनी परम्परा का आचार्य सिद्ध करने का प्रयास करते हैं । किन्तु दिगम्बर परम्परा से उनकी कुछ भिन्नताओं को देखकर प्रो० ए० एन० उपाध्ये आदि कुछ दिगम्बर विद्वानों ने उन्हें यापनीय परम्परा का आचार्य सिद्ध करने का १. ( अ ) दंसणगाही - दंसणणाणप्पभावगाणि सत्थाणि सिद्धिविणिच्छयसंमतिमादि गेहंतो असंथरमाणे जं अकप्पियं पडिसेवति जयगाते तत्थ सो सुद्धो अप्रायश्चित्ती भवतीत्यर्थः ।
- निशीथचूर्णि भाग १, पृ० १६२ दंसणपभावगाण सत्याण सम्मदियादिसुतणाणे य जो विसारदो णिस्सकियसुत्त त्यो त्ति वृत्तं भवति । वही भाग ३, पृ० २०२
पाडता जहा सिद्धसेणायरिएण अस्सा पकता ।
( ब ) आयरिय सिद्धसेणेण सम्मई ए पइट्ठि दूसमणिसादिवागर कपत्तणओ
-वही भाग २, पृ० २८१ अजसेणं ।
तदवखेणं ॥
Jain Education International
-- पंचवस्तु ( हरिभद्र ) १०४८ चूर्णिसह - पृ० १६ ( श्रीमणिविजय ( यहाँ सिद्धसेन को गुरु से भिन्न
(स) श्री दशाश्रुतस्कन्ध मूल, नियुक्ति, ग्रन्थमाला नं० १४ सं० २०११ )
अर्थ करने वाला भाव - अविनय का दोषी बताया गया है ) (द) पूर्वाचार्य विरचितेषु सन्मति नयावतारादिषु "
1
- द्वादशारं नयचकम्, (मल्लवादि ) १९८८ तृतीय विभाग, पृ० ८८६
भावनगरस्था श्रीआत्मानन्द सभा, २. ( अ ) अणेण सम्मइसुत्तेण सह कथमिदं वक्खाणं ण विरुज्झदे । ( ज्ञातव्य है कि इसके पूर्व सम्मतिमूत्र की गाथा ६ उद्धृत है ) - घवला, टीका समन्वित षट्खण्डागम १।१।१ पुस्तक १ पृ० १६
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org