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________________ २२४ : जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय प्रयास किया है। प्रो० उपाध्ये ने जो तर्क दिये उन्हें स्पष्ट करते हुए तथा अपनी ओर से कुछ अन्य कुछ तर्कों को प्रस्तुत करते हुए डॉ. कुसुम पटोरिया ने भी उन्हें यापनीय परम्परा का सिद्ध किया है। प्रस्तुत सन्दर्भ में हम इन सभी विद्वानों के मन्तव्यों की समीक्षा करते हुए यह निश्चय करने का प्रयत्न करेंगे कि वस्तुत: सिद्धसेन की परम्परा क्या थी? (ब) जगत्प्रसिद्ध बोधस्य, वृषभस्येव निस्तुषाः । बोधयंति सतां बुद्धि सिद्धसेनस्य सूक्तयः ।। -हरिवंशपुराण ( जिनसेन ) १।३० स सिद्धसेनोऽभय भीमसेनको गुरु परौ तौ जिनशांतिषणको । -वही ६६।२९ (स) प्रवादिकरियथानां केसरी नयकेसरः । सिद्धसेन कविर्जीयाद्विकल्पनखराङ्कुरः ॥ -आदिपुराण ( जिनसेन ) १।४२ (द) आसीदिन्द्रगुरुर्दिवाकरयतिः शिष्योऽस्य चाहन्मुनिः । तस्माल्लक्ष्मणसेन सन्मुनिरदः शिष्यो रविस्तु स्मृतः ॥ -पद्मचरित ( रविण ) १२३।१६७ ज्ञातव्य है कि हरिवंश पुराण के अन्त में पुन्धाटसंधीय जिनसेम की अपनी गुरुपरम्परा में उल्लेखित सिद्धसेन तथा रविषेण द्वारा पद्मचरित के अन्त में अपनी गुरु परम्परा में उल्लेखित दिवाकर यति-ये दोनों सिद्धसेन दिवाकर से भिन्न है। यद्यपि हरिवंश के प्रारम्भ में तथा आदिपुराण के प्रारम्भ में पूर्वाचार्यों का स्मरण करते हुए जिन सिद्धसेन का उल्लेख किया गया है वे सिद्धसेन दिवाकर ही है (इ) देखें-जैन साहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश, जुगलकिशोर मुख्तार, पृ० ५००-५८५ (एफ) धवला और जय धवला में सन्मतिसूत्र की कितनी गाथायें कहाँ उद्धृत हुई, इसका विवरण पं० सुखलालजी ने सन्मतिप्रकरण की अपनी भूमिका में किया है । देखे-सन्मतिप्रकरण भूमिका पृ० ५८ (जी) इसीप्रकार जटिल के वरांगचरित में भी सन्मतितर्क की अनेक गाथाएँ अपने संस्कृत रूपान्तरण में पायी जाती है। इसका विवरण मैंने इसी ग्रन्थ के इसी अध्याय में वराङ्गचरित्र के प्रसंग में किया है । १. सिद्धसेनास न्यायावतार एण्ड अदर वर्क्स-ए० एन० उपाध्ये, जैन साहित्य विकास मण्डल वाम्बे, इन्ट्रोडक्शन पेज XIV-XVII २. यापनीय और उनका साहित्य -डॉ० कुसुमपटोरिया पृ० १४३-१४८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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