________________
यापनीय साहित्य : १९७ जिनेन्द्र द्वारा प्रतिपादित मार्ग में अग्रसर हुए''। दीक्षित होते समय मात्र आभूषणों का त्याग करना तथा श्वेत शुभ्र वस्त्रों को ग्रहण करना दिगम्बर परम्परा के विरोध में जाता है। इससे ऐसा लगता है कि जटासिंहनन्दि दिगम्बर परम्परा से भिन्न किसी अन्य परम्परा का अनुसरण करने वाले थे। यापनीयों में अपवाद मार्ग में दीक्षित होते समय राजा आदि का नग्न होना आवश्यक नहीं माना गया था। चंकि वरांगकुमार राजा थे अतः सम्भव है कि उन्हें सवस्त्र ही दीक्षित होते दिखाया गया हो। यापनीय ग्रन्थ भगवतोआराधना एवं उसकी अपराजिता टीका में हमें ऐसे निर्देश मिलते हैं कि राजा आदि कुलीन पुरुष दीक्षित होते समय या संथारा ग्रहण करते समय अपवाद लिंग (सवस्त्र) रख सकते हैं। पूनः वरांगचरित में हमें मुनि को चर्या के प्रसंग में हेमन्त काल में शीत-परिषह सहते समय मुनि के लिए मात्र एक बार दिगम्बर शब्द का प्रयोग मिला है । सामान्यतया 'विशोर्णवस्त्रा' शब्द का प्रयोग हुआ है । एक स्थल पर अवश्य मुनियों को निरस्त्रभूषा' कहा गया है किन्तु निरस्त्रभूषा का अर्थ साजसज्जा से रहित होता है, नग्न नहीं। ये कुछ ऐसे तथ्य हैं जिनपर वरांगचरित की परम्परा का निर्धारण, करते समय गम्भीरता से विचार किया जाना चाहिए। मैं चाहूँगा कि आगे आने वाले विद्वान् सम्पूर्ण ग्रन्थ का गम्भीरतापूर्वक आलोडन करके इस समस्या पर विचार करें। ___ साध्वियों के प्रसंग में चर्चा करते समय उन्हें जीर्ण-शीर्ण वस्त्रों को धारण करने वाली अथवा विशीर्ण वस्त्रों से आवृत्त देह वाली कहा गया
१. ततो हि गत्वा श्रमणाजिकानां समीपमभ्येत्य कृतोपचाराः। विविक्तदेशे विगतानुरागा जहुर्वराङ्गयो वर भूषणानि ॥१३॥ गुणाश्च शीलानि तपांसि चैव प्रबुद्धतत्त्वाः सितशुभ्रवस्त्राः । संगृह्य सम्यग्वरभूषणानि जिनेन्द्रमार्गाभिरता बभूवुः ।।९४।।
-वरांगचरित २९/९३-९४ २. आवसधे वा अप्पाउग्गे जो वा महढ्ढिओ हिरिमं ।
मिच्छजणे सजणे वा तस्स होज्ज अववादियं लिंगं ।।७८॥ आगे इसकी टीका देखें-'अपवादिकलिंगं सचेललिंग'
-भगवती आराधना, भाग १ अपराजित टीका पृ० ११४ ३. हेमन्तकाले धृतिबद्धकक्षा दिगम्बरा ह्यभ्रवकाशयोगाः ।
-वरांगचरित, ३०/३२ ४. २३. . । कृतकेशलोचः।-वही ३०२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org