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यापनीय साहित्य : १८९. के आद्याचार्य के रूप में उल्लेख है । उनकी परम्परा में प्रभाचन्द्र, गुण-चन्द्र, माघनन्दि, प्रभाचन्द्र, अनन्तवीर्य, मुनिचन्द्र, प्रभाचन्द्र आदि का उल्लेख है - यह लेख तो बहुत समय पश्चात् लिखा गया है । पुनः इन लेखों में भी प्रारम्भ में जटासिंहनन्दि आचार्य का उल्लेख है, वहाँ न तो मूलसंघ का उल्लेख है और न कुन्दकुन्दान्वय का, वहाँ मात्र काणूरगण का उल्लेख है । यह काणूरगण प्रारम्भ में यापनीय गण था । अतः सिद्ध है कि जटासिंहनन्दि काणूरगण के आद्याचार्य रहे होंगे। इन शिखालेखों में सिंहनन्दि को गंग वंश का समुद्धारक कहा गया है। यदि गंग वंश का प्रारम्भ ई० सन् चतुर्थ शती माना जाता है तो गंग वंश के संस्थापक सिंहनन्दि जटासिंहनन्दि से भिन्न होने चाहिए । पुनः काणूरगण का अस्तित्व भी ई० सन् की ७वीं - ८वीं शती के पूर्व ज्ञात नहीं होता है । सम्भावना यही है कि जटासिंहनन्दि काणूरगण के आद्याचार्य रहे होंगे और उनका गंग वंश पर अधिक प्रभाव रहा हो। अतः आगे चलकर उन्हें गंग वंश का उद्धारक मान लिया गया हो तथा गंग वंश के उद्धार की कथा उनसे जोड़ दी गई हो ।
(३) जन्न ने अनन्तनाथ पुराण में न केवल जटासिंहनन्दि का उल्लेख किया है अपितु उनके साथ-साथ ही काणूरगण के इन्द्रनन्दी आचार्य का भी उल्लेख किया है ।" हम छेदपिण्ड शास्त्र की परम्परा की चर्चा करते समय अनेक प्रमाणों से यह सिद्ध कर चुके हैं कि जटासिंहनन्दि के समकालीन या उनसे किंचित् परवर्ती ये इन्द्रनन्दी रहे हैं । जिनका उल्लेख शाकटायन आदि अनेक यापनीय आचार्यों ने किया है । जन्न ने जटासिंहनन्दि और इन्द्रनन्दी दोनों को काणूरगण का बताया है ।
(४) कोप्पल में पुरानी कन्नड़ में एक लेख भी उपलब्ध होता है जिसके अनुसार जटासिंहनन्दि के चरण-चिह्नों को चाव्वय ने बताया था । इससे यह सिद्ध होता है कि जटासिंहनन्दि का समाधिमरण सम्भवतः कोप्पल में हुआ हो । पुनः डा० उपाध्ये ने गणभेद नामक
१. वरांगचरित, सं० ए० एन० उपाध्ये, भूमिका ( अंग्रेजी ), पृ० १६ पर उद्धृत -
वंद्यर् जटासिंहणंद्याचार्यदींद्रांद्याचार्यादि मुनि परा काणूर्गणं ।
- अनन्तनाथ पुराण १।१७. २. देखें – जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय - प्रो० सागरमल जैन, पृ० १४५ - १४६ ३. देखें — वरांगचरित, सं० ए० एन० उपाध्ये, भूमिका (अंग्रेजी), पृ० १७
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