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यापनीय साहित्य : १६७
किन्तु पुन्नाट या पुन्नाग शब्द का मूल अर्थ नागकेसर का वृक्ष है | कर्नाटक प्रांत में नागकेसर बहुतायत से होती है, अतः नागकेसर की बहुलता के कारण ही उस देश को पुन्नाट कहा गया है । पुन्नाट या पोन्नाट कन्नड भाषा का शब्द रूप है और पुन्नाग संस्कृत भाषा का । किन्तु इस भिन्नता के कारण इनके मूल अर्थ में कहीं भेद नहीं है । पुन्नाट संघ और पुन्नागवृक्ष मूलगण एक हो है । जैसे नन्दीगण आगे चलकर नन्दीसंघ बन गया उसी प्रकार पुन्नागगण पुन्नाटसंघ बन गया और उसमें वृक्ष सूचक 'पुन्नाग' शब्द देश सूचक 'पुन्नाट' बन गया । पुनः यापनीय पुन्नागवृक्ष मूलगण के एक अभिलेख में कित्याचार्यान्वय का भी उल्लेख हुआ हैं कित्तूर कर्नाटक प्रदेश की राजधानी रही है । कित्याचार्यान्वय संभवतः कित्तूर से ही सम्बन्धित रही होगी । पुन्नाट संघ और पुन्नागवृक्षमूलगण एक ही थे इसका एक प्रमाण यह भी है कि एक ही काल के और एक ही आचार्य विजयकीर्ति से सम्बन्धित दो भिन्न अभिलेखों में से एक में उन्हें पुन्नाटसंघ' का और दूसरे में उन्हे पुन्नागवृक्षमूलगणरे का कहा गया है । अतः पुन्नाट संघ पुन्नागवृक्षमूलगण का हो परवर्ती रूप है और इसका यापनीय होना सुनिश्चित है ।
(३) हरिषेण के इस कथाकोश में स्त्रीमुक्ति का उल्लेख उपलब्ध होता है । रोहिणी की ५७वीं कथा में स्पष्टरूप से यह कहा गया है कि इस भूतलपर जो पुरुष या स्त्री भक्तिपूर्वक ऐसा करते हैं, वे क्रमशः केवलज्ञान और मोक्ष को प्राप्त होते है । ( ज्ञातव्य है कि यहाँ 'रामा' शब्द स्त्री के लिए प्रयुक्त हुआ है ) इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि ग्रन्थकार को स्त्रीमुक्ति मान्य है और यह उसके यापनीय होने का सबसे बड़ा प्रमाण है ।
(४) प्रस्तुत कृति में स्त्री के द्वारा तीर्थंकर नाम एवं गोत्र के बन्ध का भी संकेत है । १०८ वीं कथा में रुक्मिणी के द्वारा तीर्थंकर गोत्र बाँधने
१. जैन शिलालेख संग्रह भाग ५ लेख क्रमांक ९८ ।
( सन् १९५४ सुलतानपुर )
२. जैन शिलालेख संग्रह भाग ४ लेख क्रमांक २५९ ।
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( सन् १९६५ एकसम्बि )
३. एवं करोति यो भक्त्या नरो रामा महीतले ।
लभते केवलज्ञानं मोक्षं च क्रमतः स्वयम् || बृहत्कथाकोश ५७ / २३५ ।।
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