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________________ १६६ : जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय पर अपने ग्रन्थ को आधारित करना यह सिद्ध करता है कि ग्रन्थकार भी उसी परम्परा से सम्बद्ध रहा होगा। डा० श्रीमती कुसुम पटोरिया ने भो इसी आधार पर इसे यापनीय ग्रन्थ माना है। वे लिखती हैं कि 'यापनीय ग्रन्थ के आधार पर इसकी निर्मिति भी इसकी यापनीयता की ओर संकेत करती है।' (२) इस ग्रन्थ के लेखक हरिषेण ने स्वयं अपने आपको पुन्नाटसंघी बताया है । यह पुन्नाटसंघ यापनीय परम्परा के पुन्नागवृक्ष मूलगण से हो विकसित हुआ है, इस तथ्य को हम पूर्व में सिद्ध कर चुके हैं। स्वयं डा० श्रीमती कुसुम पटोरिया लिखती हैं कि 'पुन्नाटसंघ ही यापनीय संघ अथवा उसकी कोई शाखा होगी यह मानने के लिए प्रमाण है-स्त्रीमुक्ति तथा गृहस्थमुक्ति जैसे सिद्धान्तों का समर्थन तो पुन्नाटसंघ के यापनीय होने का सबल प्रमाण है'। पुन्नाट संघ यापनीय परम्परा से स्पष्टतया सम्बन्धित है, इस तथ्य को चर्चा हम पूर्व में ही कर चुके हैं। किन्तु कुछ नये तथ्यों के आधार पर पुनः इस प्रश्न पर एक बार विचार कर लेना आवश्यक है। एक अभिलेख में 'श्रीयापनीय नन्दीसंघ पुन्नागवृक्षमूलगणे श्री कित्याचार्यान्वये' ऐसा स्पष्ट उल्लेख है । इनके अतिरिक्त रड्डवग्ग, हासूर, हुलि, कोल्हापुर आदि के अभिलेखों में भी पुन्नागवृक्षमूलगण का उल्लेख है। प्रश्न यह उठता है कि क्या पुन्नाट संघ और 'पुन्नागवृक्षमूलगण' एक हैं ? इस सम्बन्ध में हमें सर्वप्रथम पुन्नाट और पुन्नाग शब्द पर विचार कर लेना चाहिये। हरिवंशपुराण की भूमिका में डा० दरबारीलाल कोठिया स्पष्ट रूप से यह लिखते हैं कि पुन्नाग और पुन्नाट शब्द पर्यायवाची हैं । आप्टे ने अपने संस्कृत हिन्दी कोश में पुन्नाट और पुन्नाग दोनों शब्दों को एक वृक्ष का नाम बताया है। यद्यपि जैन पुराणों एवं अभिलेखों में पुन्नाट शब्द का प्रयोग मुख्य रूप से कर्नाटक देश के लिए हुआ हैं, १. यापनीय और उनका साहित्य पृ० १५३ । २. वही पृ० १४९ एवं पृ० १५३ । ३. जैन शिलालेख संग्रह भाग २ लेखक्रमांक १२४ । ४. जैन शिलालेखसंग्रह भाग २ देखें शब्दसूची। ५. हरिवंशपुराण भूमिका ( पं० दरबारीलाल कोठिया) पृ० २३ । ६. संस्कृत हिन्दी कोश ( आप्टे ) पृ० ६१८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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