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________________ यापनीय साहित्य : १६१ है। हम पूर्व में ही यह सिद्ध कर चके हैं कि यापनीय ग्रन्थों की श्वेताम्बर आगम साहित्य से बहुत निकटता है। इस आधार पर यह यापनीय परम्परा की कृति प्रतीत होती है। ( २ ) इसके कर्ता के रूप में गोतम स्वामी का उल्लेख होने से इतना तो अवश्य सिद्ध होता है कि कृति का आधार अविभक्त प्राचीन परम्परा ही है । श्वेताम्बर मान्य आगमों में महावीर को सप्रतिक्रमण धर्म का प्रतिपादक होने सम्बन्धी पाठ अति प्राचीन है और श्वेताम्बर एवं यापनीयों में समान रूप से प्रचलित रहे हैं। पुनः इसके टीकाकार प्रभाचन्द बताये हैं। इन्होंने चन्द्रप्रभदेव के सान्निध्य में यह टीका लिखी थी। हमें स्मरण रखना होगा कि ये प्रभाचन्द्र प्रज्ञेयकमल मार्तण्ड एवं न्याय कूमद चन्द्र के कर्ता प्रभाचन्द्र से भिन्न है। ई० सन् ९८० के चालुक्य वंशके सौदत्ति अभिलेख में यापनीय संघ के कण्डूर (क्राणूर) गण के प्रभाचन्द का उल्लेख है। अभिलेख में इन्हें शब्दविद्यागमकमल एवं षट्तकिलङ्क कहा गया है ।' इन्होंने अपनी परम्परा के शाकटायन के व्याकरण-ग्रन्थ शब्दानुशासन पर न्यास लिखा था, अतः सम्भव यही है कि इन्होंने अपनी परम्परा में प्रचलित प्रतिक्रमण पर टीका भी लिखी होगी । टीकाकार का यापनीय होना यही सिद्ध करता है कि यह ग्रन्थ यापनीय परम्परा का है। (३) इस प्रतिक्रमण सूत्र के यापनीय होने का एक अन्य प्रमाण यह भी है कि इसमें 'रात्रि भोजन विरमण' को सर्वत्र छठे व्रत या अणुव्रत के रूप में उल्लेखित किया गया है। पं० नाथूरामजी प्रेमी, श्रीमती कुसुमपटोरिया आदि अनेक विद्वान् यह स्वीकार करते हैं कि रात्रि भोजन विरमण को छठे व्रत के रूप में मान्य करने की प्रवृत्ति यापनीय एवं श्वेताम्बर है। क्योंकि दशवैकालिक आदि प्राचीन आगमों, भगवती आराधना और उसकी विजयोदयाटीका में सर्वत्र इसे छठे व्रत के रूप में उल्लेखित किया गया है जबकि दिगम्बर परम्परा इसका समावेश १. देखें-जैन शिलालेख संग्रह भाग २ लेख क्रमांक १६० २. ( अ ) अहावरे छठे अणुव्वदे सव्व भंते राइभोयण पच्चक्खामी । प्रतिक्रमणग्रन्थत्रयी-पृ० १३० (ब) राय भोयणवेरमणछट्ठाणि ।-वही पृ० १०० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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