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________________ यापनीय साहित्य : ९९ जाती हैं। पूनः नामों के इस संकलन में कालक्रम और गुरु-परम्परा का कोई ध्यान नहीं रखा गया है । जहाँ अभिलेख' में पुष्पदन्त और भूतबलि को अर्हत्बलि का साक्षात् शिष्य दिखाया गया है वहीं नन्दीसंघ पट्टावलि में उनके बोच माघनन्दि और धरसेन का उल्लेख है। इसी प्रकार उक्त अभिलेख में माघनन्दि पुष्पदन्त और भूतबलि के शिष्य नेमिचन्द्र के शिष्य हैं, वहीं नन्दीसंघ की पट्टावली में वे धरसेन के गुरु हैं। जहाँ एक अन्य पट्टावली' में कुन्दकुन्द को माघनन्दी का प्रशिष्य और जिनचन्द्र का शिष्य कहा गया है, वहीं उक्त अभिलेख में माघनन्दी को कुन्दकुन्द की शिष्य परम्परा में उनसे १०वें स्थान पर बताया गया है । सिद्धरवसति के १४वीं शती के अभिलेख मे पुष्पदन्त और भूतबलि की जो गुरु परम्परा दी है, उसमें तो कालक्रम के विवेक का भी पूर्ण अभाव परिलक्षित होता है। उसमें आचार्यों का क्रम इस प्रकार है कुन्दकुन्द उमास्वाति (गृध्रपिच्छ) बलाकपिच्छ समन्तभद्र शिवकोटि देवनन्दी भट्टाकलक जिनसेन गुणभद्र अर्हद्बलि पुष्पदन्त भूतबलि नेमिचन्द्र माघनन्दि १. जैन शिलालेख संग्रह भाग-१, सिद्धरवसति अभिलेख, क्रमांक १०५ २. षट्खण्डागम धवला टीका समन्वित, खण्ड-१, भाग-१ पुस्तक-१, प्रस्तावना प० २१-२२,पर उद्धृत ३. पट्टावली पराग संग्रह पृ०-११७-११८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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