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________________ यापनीय साहित्य : ९५ का भी उल्लेख है । इससे धवला में उन्हें गिरिनार की चन्द्रगुफा में निवास करने वाला बताया गया है, उस कथन की पुष्टि होती है । इसी ग्रन्थ के चतुर्थ खण्ड में अग्रायणी पूर्व के मध्य २८ हजार गाथाओं में वर्णित शास्त्र को संक्षेप में किये जाने का भी उल्लेख है । जहाँ दिगम्बर परम्परा में मात्र धवला में उनके इस ग्रन्थ का उल्लेख है । वहाँ श्वेताम्बर परम्परा में छठी शताब्दी से लेकर १५वीं शताब्दी तक अनेक ग्रन्थों में उनके इस ग्रन्थ के निरन्तर उल्लेख पाये जाते हैं। इससे यह निश्चित होता है धरसेन और उनका ग्रन्थ योनिप्राभूत (जोणिपाहड) श्वेताम्बर परम्परा में मान्य रहा है । अतः वे उत्तर भारत की उसी निर्ग्रन्थ परंपरा से सम्बद्ध होंगे जिनके ग्रन्थों का उत्तराधिकार श्वेताम्बर और यापनीय दोनों को समान रूप से मिला है । यापनीयों के माध्यम से ही इनका और इनके ग्रन्थ जोणीपाहुड का उल्लेख धवला में हुआ है। ___ 'जोणीपाहुड' में उसके कर्ता का नाम प्रज्ञाश्रमण (पन्नसवण) है। प्रज्ञाश्रमण, क्षमा-श्रमण या क्षपण-श्रमण की तरह ही एक उपाधि रही है जो उत्तर भारतीय अविभक्त निर्ग्रन्थ परम्परा में प्रचलित थी। नन्दीसूत्र (२९) में आर्यनन्दिल को वंदन करते हुए 'पसण्णमण' शब्द आया है-उसमें वर्ण व्यत्यय हुआ है मेरी दृष्टि में उसे 'पण्णसमणं' होना चाहिये । धवला में प्रज्ञाश्रमण को नमस्कार किया गया है। तिलोयपण्णत्ति में प्रज्ञा श्रमणों में वज्रयश (वइरजस) को अन्तिम प्रज्ञाश्रमण कहा गया है । कल्पसूत्र को स्थविरावली में आर्यवज्र और उनके शिष्य १. अग्गेणिपुन्वनिग्गयपाहुडसत्थस्स मज्झयारम्मि । किंचि उद्देसदेसं घरसेणो वज्जिय भणइ ।। गिरिउज्जितठिएण पच्छिमसे सुरटुगिरिनयरे । बुडतं उद्धरियं दूसमकालप्पयावम्मि ।। -विचारामृतसंग्रह (कुलमण्डनसूरि) सूरत, पृ० ९ २. अट्ठावीससहस्सा गाहाणं जत्थ वन्निया सत्थे । अग्गेणिपुज्यमझे संखेवं वित्थरे मुत्तु ।। विचारामृतसंग्रह पृ० ९-१० ३. णमो पण्णासमणाणं ॥१८॥ षट्खण्डागम घवला खण्ड ४ भाम १ पुस्तक ९ पृ० ८१-८२ ४. पण्णसमणेसु चरिमो वइरजसो नाम ओहिणाणीसु । चरिमो सिरिणामो सुदविणयसुसीलादिसंपण्णो । तिलोयपण्णत्ति ४.१४८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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